Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ | तृतीय अम्बर चरित्रम् आदेशः अस्मभ्यमर्पयामास त्रिदण्डाभिधपादपम् / आरूढ मेष यो यावत् कैलासं वर्द्धयिष्यति // 34 // || मदीयं युवयोर्वत्से ! दर्शनं कारयिष्यति। शुभं भवतु युष्माकं श्रीकण्ठो विससर्ज नौ // 35 // ततो मुमुचतुर्वृद्धा भूम्यामानीय नौ पुनः / एनमारुह्य कैलासं गत्वा संसेव्य शङ्करम् // 36 // मध्याह्न वल्यते पश्चात् स्थानके मुच्यते द्रुमः / भूयस्वभावरूपेण भूयते नित्यमुत्तम ! // 37 // अधुना गम्यते तत्र तदा पृष्टाम्बडेन सा / कथं स्थाष्णु वनं मूनि साध्वदच्छणु सत्तम ! // 38 // अन्यदा रूढवृक्षायां मयि यात्यां नमोऽध्वना / सूर्येण वीक्ष्य वैचित्र्य-मिति चिन्तितमीदृशम् // 3 // करालः कोऽपि कृत्वेति शक्तिरूपं बुभुक्षितः। मां भक्षयतुमायाति भूतलादूर्ध्वमेव किम् // 40 // विमृश्य सभयं भीतः संलीनो निजमण्डले / वलितां मानुषी ज्ञात्वा स्वच्छः पप्रच्छ तां रविः // 41 // पप्रच्छ वनिते! का वं गत्वा कुत्र समागता। यथाभूतं मया सर्व स्वरूपं कथितं रवेः॥४२॥ शिवभक्तां रविर्तात्वा मामवोचत हर्षतः / वरं वृणु मया प्रोक्तं शिवभक्तिर्ममास्तु वै // 43 // शिवभक्त्या तितुष्टेन सूर्येण निज कोशतः / अपूर्व तिलकं दत्तं मह्य येनाधिका तिः // 44 // // 30 //

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