Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड चरित्रम् तृतीय आदेशः // 28 // आवाभ्यां रममाणाभ्यां तत्र निर्भयमुत्तम ! / ददृशे जरती चैका रौद्रा नारी भयङ्करा // 14 // तां दृष्ट्वाऽऽवां ततो नष्टे पृष्टेऽधावत सावयोः / अग्रे तस्या क्व नश्यावः सत्त्वं धृत्वा स्थिते पुनः॥१५॥ वृद्धावादीत् युवां रे रे ममाग्रे च क्व यास्यथः। हे मातः ! प्रोक्तमावाभ्यां नमस्यावस्तव क्रमान् // 16 // सा वृद्धा स्माह सन्तुष्टाऽऽ-वयोविनयवाक्यतः। पुत्रीभ्यामिव हे वत्से नानेतव्यं भयं मनाक // 17 // K कैलासेऽहं गमिष्यामि तत्र देवो महेश्वरः। आगच्छतां मया सार्द्ध युवयोर्दर्शयामि तम् // 18 // आवाभ्यां कथितं मातः ! कथं तत्रैव गम्यते / श्रीमहेशः कुतः क्वाऽऽवां भवती क्या महत्यपि // 1 // K व्रज तत्र गृहीत्वाऽऽवां प्रसादं कुरु साम्प्रतम् / अस्मदीयं महद्भाग्यं दृश्यते देव ईश्वरः // 20 // शिवस्याहं प्रतीहारी शक्तिर्मम गरीयसी / इति वार्ता प्रकुर्वन्त्या कैलासेऽपि वयं गताः॥२१॥ वाक्य सांभली करी. गिरिकलासी. ईश्वरपार्वती तेणड आवासि / तेहनी कहीए हु पडिहारी, सक्ति अचिंत्य अछह मुज अपारि // 1 // कुमरीवाक्यं / आज भलू जे अम्हे तुम्ह पासइं, लेई जाओ गिरि कैलास / इम कहतां अम्हे तिहां गया, ईश्वर पार्वती दर्शन भया॥२॥ // 28 //

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