Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड तृतीय चरित्रम् आदेशः रविः प्राह पुनर्वत्से ! त्वं याचस्व किमु दु तम् / मयोक्तं यदि तुष्टोऽर्क ! देयाः सहचरं वनम् // 45 // एवमस्तु निगद्यागा-भास्करो निजमण्डले / अहमागां निजस्थानं तदादिसहगं वनम् // 46 // राजकन्या द्वितीयाऽह-मुभयोरावयोरिति / शिवभक्तिं प्रकुर्वन्त्योः सुखेन यान्ति वासराः॥४७॥ कथयित्वेति तत्रत्या देवी राजलसंज्ञका / प्रविवेश पुरीमध्ये पृष्टे गादम्बडः स च // 48 // चतुष्पथे गता याव-दम्बडेनानुगच्छता / रक्षयाऽन्धारिकायाश्च छटिता स्तम्भिता च सा // 4 // स्वयं नटस्य रूपेण भूत्वा नृत्यममण्डयत् / माई ङ्गिको मृदङ्ग चावादयच्छन्दसा पुनः // 50 // कौतुकं तत्र पश्यन्ति जल्पन्तीति जना अहो / एक एव कथं नृत्यं कर्ता शुश्राव चाम्बडः // 51 // विद्यया बहुरूपिण्यै-कत्रिंशत् खेलिका व्यधात् / सर्वाश्व नर्तितु लग्ना दृश्यते हीनमेकया॥५२॥ ज्ञात्वेति विप्रतारिण्या राजीव विप्रतारिता / खेलिकीभूय तन्मध्ये नृत्यति स्वेच्छया स्वयम् // 53 // पूर्ण द्वात्रिंशताबद्धं नाटकं वीक्षितु वरम् / प्रवृत्ती राजलोकेऽभू-द्राजा राज्ञी सुताऽगमत् // 54 // स्वस्वकार्य विमुच्यायुः सर्वे नृत्यं विलोकितुम् / नृत्यन्ती राजिकां दृष्ट्वा राजकन्या जगाद ताम् // 55 // // 31 //

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