Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 31
________________ अम्बड चरित्रम् तृतीय आदेश: // 27 // तस्य चन्द्राभिधा पत्नी पुत्री चन्द्रयशा तयोः। भाण्डारे तस्य भूपस्य रत्नमाला भवेदरा // 3 // आनीयतामयं हार-समाहारः सुखश्रियाम् / गृहीत्वा तदचोऽचालीत् पाथेयमिव सोऽम्बडः // 4 // अतिक्रामन् पथं पान्थः इव सिंहलनामनि / दीपेऽगात् वनमैतिष्ट तत्रैकं विविधद्रुमम् // 5 // तत्रस्थश्चिन्तयेदेवं सत्त्ववानम्बडो हृदि / ममैष राजभवने प्रवेशो भविता कथम् // 6 // तावदेकां स्त्रियं पश्ये-चरन्तीं नवयौवनाम् / यस्या मूनि द्रुमः स्फारः कण्ठे हारस्सकोतुकम् // 7 // तादृशं वीक्ष्य दथ्यौ स सैव चन्द्रयशा भवेत् / पप्रच्छ पार्श्वमायान्तीं यासि चन्द्रयशा कुतः॥८॥ तया प्रोक्तं महामूढ ! वातुलः किन्तु वर्त्तसे / आकाशे किन्तु सुप्तोऽभूः सहसा यदि जल्पसि // 6 // अस्मि चन्द्रयशा नैव सैवास्ति राजकन्यका / वैरोचनप्रधानस्य सुताऽहं राजलाभिधा // 10 // अम्बडः प्राह हे भद्रे ! सत्यं ते वचनं वद। वृक्षयुक्तवनप्रायं दृश्यते मूर्ध्नि किं तव // 11 // तदा सा मुदिता प्राह तस्य वाक्यामृतप्लुता / आकर्णय सकर्ण ! त्वं वृत्तान्तं मूलचूलतः // 12 // अन्यदा राजकन्या सा द्वितीयाऽहं परस्परम् / श्रावां हि क्रीडितु लग्ने वने सस्नेहचेतसौ // 13 // // 27 // I M

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