Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड चरित्रम् द्वितीय आदेशः // 17 // अशुभस्य कालहरणं कालेन क्षीयते शुभम् / मा चिन्तां कुरुते तात ! कालः कालो भविष्यति // 27 // भानुश्च मन्त्री दयिता सरस्वती गता मृता सा नृपकौतुकेन / वाराणसीं प्राप्य पुनश्च लब्धा जीवन् नरो भद्रशतानि पश्यति // 1 // कुर्कुटः पर्यटैस्तत्र तृषाक्रान्तोऽन्यदाऽभवत् / पश्यन् जलाश्रयं वापी दृष्ट्वान्तः प्रविशन मुदा // 28 // तत्र यावत्पपौ नीरं सातस्तावदम्बडः / आत्मरूपं यथाभूतं वीक्ष्य चेतसि हर्षितः // 26 // भाग्येनाटमटीन्याया-नीरं लेभे मयेप्सितम् / गृहीत्वा तत्कियत् पार्श्वे निरगात्पुनरम्बडः // 30 // इतस्ततो वने भ्राम्यन शेते तिष्ठति गच्छति / अर्द्धरात्रेऽन्यदा काचित् शुश्राव रुदती स्त्रियम् // 31 // का रोदिति विमृश्येति तद्रोदनानुसारतः। तस्याः पार्वे गतः सोऽपि त्वं कथं कात्र रोदिषि // 32 // जगौ सगदगदं साऽथ सम्बन्धं शृणु मे नर ! / पत्तनं रोलगपुरं तत्र हंसनृपोत्तमः // 33 // तस्याभूत् श्रीमती राज्ञी राजहंसी तयोः सुता / वरयोग्यां नृपो दृष्ट्वा तद्विवाहममेलयत् // 34 // अहो पृथ्वीपुराधीशो हरिश्चन्द्रनरेश्वरः / महीचन्द्रसुतस्तस्य ज्ञातव्यो वर एव सः // 35 / / 2 // 17 //

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