Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 19
________________ अम्बडचरित्रम् गोरखयोगिनिवचनविशेषि गढमढमंदिर सुदर देखी। द्वितीय योगी थानक लही सइ किम गिउवन भीतरि चीतइ ईम // 6 // आदेशः तत्रैकः कोऽपि पुरुषः संमुखस्तेन जल्पितः / अहो अम्बड ! भूयोभि-दिनैस्त्वं कथमागतः // 7 // अम्बडो विस्मयं पाप किं कार्य ते मया समम् / तमर्थं वेत्ति तेनोक्तं योगी कमलकाञ्चनः // 8 // क्षणमात्रं भयभ्रान्तस्तच्छ त्वा धृतसाहसः / कृत्वा रूपं महत् सोऽपि गतवानुपयोगिनम् // 1 // तावदन्धारिका लग्ना रोदितुगाढमेव च / कथितं योगिनाऽन्धारि ! कथं रोदिषि साऽवदत् // 10 // पश्य धूर्तः पुमानेष मां गृहीतु समागतः / तेन रोदिमि सोऽवादीत् को गृह्णाति सतो मम // 11 // | न ग्रहीष्यति कोऽपि त्वां मा रोदीरिति सोम्बडः / स्वरूपं तादृशं दृष्ट्वा स्वचेतसि चमत्कृतः // 12 // ___ यतः-भवितव्यं भवत्येव नालिकेरफलाम्बुवत् / गच्छत्येव हि गन्तव्यं गजभुक्तकपित्थवत् // 13 // I XI इत्थं ज्ञात्वा स्थितः सोऽपि योगिना जल्पितोऽम्बडः। श्रीमद्गोरखयोगिन्या प्रेषितोऽसि वरं भवेत् // 14 // K एवं कुशलिनी सा स्यात् प्रसादात् तव साम्प्रतम् / सेवकेन समं तेन वल्लार्थ प्रेषितोऽम्बडः // 15 //

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