Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ अम्बड चरित्रम् द्वितीय आदेशः एता विद्याचतस्रोऽहं जानामि कामितप्रदा। त्वदीयं नाथ ! सर्वस्वं तवास्मि वशवर्तिनी // 33 // तत्र स्थित्वा कियत्कालं चन्द्रावल्या समन्वितः। गृहीत्वा स्वर्णरत्नादि स्वस्थानं सोऽम्बडोऽगमत् // 34 // मी अग्रे गोरखयोगिन्याः फलं मुक्त्वा ननाम ताम् / तया प्रसादितः सोऽपि स्वपुरे सुखमन्वभूत् // 35 / / // इति श्री अम्बडकथानके गोरखयोगिनीदत्तप्रथमादेशः सम्पूर्णः // ॥अथ द्वितीयादेशः॥ कियत्यपि गते काले गोरक्षाभिधयोगिनीम् / नत्वा द्वितीयमादेशं ययाचेऽम्बडसाहसी // 1 // साऽऽचख्यौ दक्षिणस्यां हि दिशि मध्ये महार्णवम् / हरिवन्धाभिधद्वीपे योगी कमलकाञ्चनः // 2 // आनयान्धारिकां तस्य नीत्वाऽऽदेशं नमोऽध्वना। तद्वीपस्य समीपेऽगात् अम्बडः पश्यति स्म तम् // 3 // प्राकारकपिशीर्षाली प्रतोलीदारराजितम् / अनेकभवनोत्तङ्ग विपणिश्रेणिशोभितम् // 4 // तं दृष्ट्वाऽचिन्तयत् सोऽपि योगिनः स्थानकं कथम् / लभ्यते कार्यसिद्धयर्थं तदुद्याने गतोऽम्बडः // 5 // // 14 //

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116