Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बर चरित्रम् द्वितीय आदेश: // 24 // प्रच्छन्नसमयं ज्ञात्वा रूपं तद् योगिनोऽकरोत् / फलमिश्रं करे शाकं गृहीत्वा तद्गृहेऽगमत् // 2 // सस्नेहं जल्पितस्तेन शृणुतां मे वचः प्रिये ! / गृह्णन्तु प्रवरं शाकं संस्कर्त्तव्यमिदं द्रुतम् // 3 // निष्पादनीयमन्नं च सकालं किल भोक्ष्यते / अधुनेवागमिष्यामि कथयित्वेति सोऽगमत् // 4 // विमुच्य योगिनो रूपं काकीरूपेण सोऽम्बडः / मठिकायां समागत्य योगिनं तमजल्पयत् // 5 // स्वामिन्नुत्थीयतां सद्यो द्रुतमागम्यतां गृहे / निष्पन्नमशनं शाक-मात्मभिः सह भुज्यते // 6 // उत्थितः सस्मितं योगी काकिन्याः पुरतोऽचलत् / अद्य तावत् कलत्राभ्यां सकालं राद्धमुन्मना // 7 // अम्बडो ववले पश्चात् काकीरूपं विहाय सः / मठिकायां समागत्यान्धारिकामग्रहीत् द्रुतम् // 8 // | तदा सा रोदितु लग्ना हता तेन चपेटया। मत्कृतं रे न जानासि ? रुदन्ती रक्षिता ततः // 6 // मारसार इति प्रोक्तं सत्यं लोके प्रतिष्ठितम् / तां गृहीत्वा दले गत्वा राजहंस्यै समर्पयत् // 110 // ततो भूयोऽम्बडस्तस्य गहचर्या व्यलोकयत् / त्रयोऽपि रासभीभूता भूक्त्वा यावत्समुत्थिताः // 11 // उन्मत्ता लत्तया जन्ति भुत्कुर्वन्ति परस्परम् / वीक्षितु मीलिता लोकाः कौतुकेन हसन्ति च // 12 // // 24 //

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