Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 26
________________ अम्बड द्वितीय चरित्रम् आदेशः आकृष्य साटिकानीता योगिन्यो जगृहुश्च ताम् / शृङ्गण शृङ्खलोत्तीर्णा जयोऽस्माकं बभूव च // 8 // | अनेनैव प्रकारेण कंचुकश्वटितो मम / कथयित्वेति सम्बन्धः प्रवृत्ता रोदितु पुनः // 1 // अम्बडः प्राह मारोदीनिजरूपमदर्शयत् / राजहंसी चमञ्चक्रे न सामान्यपुमानसौ // 2 // // 22 // |निशीथे मम दुःखस्य विभागी भाग्यवानभूत् / वरमेनं विचिन्त्येति भाग्यलब्धं वृणोम्यहम् // 8 // अद्य लग्नदिनं विद्धि वृणु मां देव ! साऽवदत् / ज्ञात्वा तस्या अभिप्रायं स्त्रीचक्रे तां तदाऽबडः // 4 // तयोरजायत प्रीति-रत्यन्तं तिष्ठतो वने / दुःखं च विस्मृतं सर्वं रागः स्याचित्तचोरकः // 8 // . अन्यदा राजहंसी सा क्रीडती स्वेच्छया वने / चखाद मुग्धभावेन फलं वृक्षस्य कस्यचित् // 86 // तावत्सा रासभी जाता भुत्कुर्वन्त्यम्बडान्तिकम् / आगतां तादृशीं दृष्ट्वा सोऽपायत् वापिकाजलम।।८७॥ स्वरूपं बिभ्रती राज-हंसी स्माह निजं पतिं / प्रभावं वारिणां वाप्या कथं जानातु वल्लभ ! // 8 // R अम्बडः पूर्ववृत्तान्तं कथयामास तत्पुरः / साऽपि तस्यैव वृक्षस्य पत्युः फलमदर्शयत् // 1 // उपलक्ष्य फलं नीत्वा सोऽपि पप्रच्छ ता प्रिये ! / साटिका क्वास्ति सा पाह-देव रोलगपत्तने // 10 // K 1 // 22 //

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