Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बडचरित्रम् द्वितीय आदेश: // 20 // | किं कर्त्तव्यं तदा यत्र वाहरा तत्र धाटिका / पण्डिता यदि वैरूप्यं चिन्तयेत् कस्य कथ्यते // 58 // प्रोक्तं ताभिरुपायो हि क्रियते जीवितस्य किम् / न तु पीडयति ज्ञातं शुभं प्रायेण यत्नतः // 56 // सर्वे जीवाः सुखाकाङ्क्षाः सर्वेऽपि दुःखभीरवः। सर्वे विभ्यन्ति मरणात् सर्वेऽपि जीवितप्रियाः॥६॥ मयोक्तं मत्पितुः पूर्व हंसराज्ञो निगद्यते / पश्चादाराध्यते सूर्यो यथाविघ्नं प्रशाम्यति // 61 // प्रमाणमिति सर्वाभि-स्ताभिरुक्ता नृपौकसि / अहं गत्वा नृपस्याग्रे तस्या वृत्तमचीकथम् // 62 // श्रुत्वा तच्चेष्टितं दूनः पण्डिताया अपण्डितम् / आदिदेश नृपः क्रुद्धस्तद्विघाताय सेवकान् // 63 // मयोक्तं पुनरप्येवं तात ! मा मार्यतामियम् / ब्राह्मणी शक्तिरूपा हि ब्रह्महत्या न सौख्यदा // 6 // विमृश्य क्रियते कार्य प्रपञ्चेन हि सिद्धयति / देवसम्बन्धिविघ्नानि प्रतिकार्याणि दैवतैः // 65 // अन्यथा पण्डिता क्रुद्धा भवन्तं मारयिष्यति / आराध्यते यदा सूर्यस्तदाऽस्माकं जयो भवेत् // 66 // . वारयित्वेति राजानं सूर्य आराधितस्ततः / सोऽपि तुष्टो ददौ मह्य विघ्नहदिव्यकञ्चकम् // 6 // ताभ्यश्च सप्तकन्याभ्यो गुटिकाः सप्त सोऽर्पयत् / शृण्वन्तु विधिमेतेषां गुरुगम्यं फलप्रदम् // 6 // // 20 //

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