Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 16
________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेशः // 12 // | स्वयंवरसमायातो वरः कैलासनायकः / इति लोकवचः श्रुत्वा यावदूवं विलोकयेत् // 11 // तस्या मुण्डितशीर्षाया अधस्थायास्तदा शिवः / त्रिवारं घातयेन्मूनि नभस्थो वृषभक्रमः॥१२॥ दृष्ट्वा हसन्ति ते लोकाः कौतुकाकुलचेतसः। चन्द्रावली ललज्जे सा चन्द्रिता चन्द्रमौलिना // 13 // | प्राह चन्द्रावली स्वामिन् ! किं त्रपाकारि मण्डितम् / न नावसरः सोऽपि तथा हन्ति पुनः पुनः।।१४॥ | तदा सा रोदितु लग्ना नारीणां रोदनं बलम् / रोदं रोदमभिव्योम व्योमकेशं न पश्यति // 15 // अपश्यन्ती महादेवं विलक्षा भाविनं वरम्। सा मार्जारीव चकिता पतिता शिककादिह // 16 // तादृशं हसितं लोकः अदृष्टे वृषभध्वजे / श्रभूचन्द्रावली क्षिप्र-मूनि लिङ्गाङ्गभागिनी // 17 // कैसासेऽपि कदा यातो वराकी केन वञ्चिता। वारं 2 हसन्तो हि स्वस्वस्थानं गता जनाः॥१८॥ कृकलासी पणिकायां पतिता मूढचेतना। धूर्तेन धर्षिता बाटं दर्शयेत् किं मुखं निजम् // 11 // गतं दुग्धं गता मूषी किं मार्जारि निरीक्षसे / अगाद् गृही पयो लात्वा मूषिका दरमाविशत् // 120 // धूर्तस्य मिलितो धूर्तश्चन्द्रिका तेन चन्द्रिता / मौनेन विस्मिता तस्थौ समेतस्तावदम्बडः // 21 // | // 12 //

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