Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेशः // 11 // हरः प्रोवाच हे भद्रे ! योग्याऽसि भवती मम / भवतु मे भवानीव दास्यामि तव कामितम् // 10 // परं त्वं दृश्यसे भक्ता तदा मे वचनं कुरु / चन्द्रावल्या ततो मेने प्रमाणं हरभाषितम् // 1 // स प्राह ते विवाहाय कैलासे गम्यते तदा / संस्कारा यदि मुच्यन्ते मानवीयास्त्वया पुरा // 2 // जगौ चन्द्रावली देव ! समादिशतु सोऽवदत् / कर्त्तव्यं वपनं मूनि मुखं कज्जलय स्वयम् // 3 // शटितात्रुटितन्येवं वस्त्राणि परिधेहि च / बधा न(ते)पादयोर्लोह-शृङ्खलां खलु वर्णिनि ! // 4 // कुरुष्व राप्तभारोह मोहं मयि दधासि चेत् / इत्थं कृत्वा सुखं भुक्ष्व सुलभं दुर्लभाद् भवेत् // 5 // // ईश्वरो लभ्यते भर्ता मृत्तमातृकया मया। चिन्तयित्वेति सोत्कण्ठं चन्द्रावल्या तथा कृतम् // 6 // | कन्या कुत्सितवेषेण क्षिप्यते वर्ण के जने। विवाहे वरवेलायां तद् पं सुभगं भवेत् // 7 // क्षणमात्रं क्वचिद् गत्वा मध्याह्न पुनरागमत् / ईश्वरो वृषभारूढ श्राकाशे सुप्रकाशके // 8 // | चन्द्रावल्या महेशस्य विवाहे मिलिता जनाः। पश्यन्ति तत्र सयोगं वर्णयन्ति परस्परम् // 6 // धन्या चन्द्रावली कन्या शिवस्थाङ्गिभोगिनी। पार्वतीस्थानके जाता कैलाप्तगिरिवासिनी // 110 //

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