Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बर चरित्रम् प्रथम आदेशः // 10 // N | साधयित्वेति ते विद्य इन्द्रजालस्य विद्यया। अम्बडः शिवरूपेण चन्द्रावल्या गृहेऽगमत् // 8 // आपतन्तं शिवं ज्ञात्वा यथारूपं वृषध्वजम् / चन्द्रावली तमभ्येत्य नत्वेति स्तुतिमातनोत् // 10 // वं रुद्रस्त्वं शिवः स्वामी स्वमीशो वृषभध्वजः। पार्वतीरमणो देवः ! सुखं देहि महेश्वर ! // 11 // ममाद्य सफलं जन्म ममाद्य पावनं गृहम् / इति भक्तिवत्रः प्रोच्याऽनमत् चन्द्रावली शिवम् // 12 // तावता रोदितु लग्नो रोदसीपुरमीश्वरः / उवाच चकिता चन्द्रा स्वामिन् ? किं तव रोदनम् // 13 // त्वं हर्ता विश्वकर्ता त्वं त्वमेव परमेश्वरः / तव दुःखं कृतं केन मर्तुमिच्छुः स एव कः // 14 // शिवः प्राह स कोऽप्यस्ति यो मे दुःखकरो जने / अवक् चन्द्रावली देवं कथं रोदिषि सोऽवदत् // 15 // शृणु चन्द्रावलि ! प्राण-प्रिया मे पार्वती मृता। तस्मादोदिमि यत्पत्नी-दुःखं जानाति राघवः // 16 // मा कृथाः दुःखमीदृशं मादृशं कार्यमादिशः। हरः प्राह ममैव त्वं कलत्रं भव शाम्भवी // 17 // शिवस्य वचनं श्रुत्वा साऽह देवाऽस्मि मानवी / अपवित्रा भवद्योग्या कथं भव ! भवाम्यहम् // 18 // यूयं देवा श्रहं नारी पूतापूतकुयोगता / बलीव॰ष्ट्रयोाय-स्ताहक सङ्गम भावयोः // 11 // // 10 //

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