Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड चरित्रम् प्रथम आदेशः // 8 // यावद् गृहसमीपेऽग तावता ददृशेऽनया / नागपाशेन बद्धोऽसौ हाहाकारोऽभवत्तदा // 8 // || चन्द्रावल्या जनन्या भदावल्या विहस्य यत् / जल्पितं रे कृतं भव्यं मुखमर्कटिका ददे॥६॥ तदा कोलाहले जाते दधावे नागडस्वसा / अपश्यद् भ्रातरं बद्धं या सर्पदुष्टशृङ्खला // 7 // क्षिप्रं तीक्ष्णक्षुरप्रेण छित्त्वा तं नागपाशकम् / सोदरं मुत्कलं चक्रे भगिनी भ्रातृमोहिता // 71 // बद्धोऽपि छुट्टितः सिंहो नागडो मुत्कलोऽभवत् / ततश्च कोपसाटोपं सर्पवत्कृतफूत्कृतिः // 72 // कथयित्वेति रे दासि ! त्वं मां हससि यन्त्रितम् / अधावत् दन्तपेषेण दुष्टभदावली प्रति // 73 // भद्रावल्या कृतं शक्त्या सूर्यमण्डलपीडनम् / सूर्येण सभयं ज्ञातं सा नागडेन रोषिता // 7 // सुतः किरणवेगोऽपि प्रेषितो नागडं वद / विरोधो नैव कर्तव्यो एतया शक्तिरूपया // 7 // यतः-अनुचितकर्मारम्भः स्वजनविरोधो बलीयसी स्पर्द्धा / प्रमदाजनविश्वासो मृत्युद्वाराणि चत्वारि // 76 // अत्रागत्य भवान् शीघ्र-माराधयतु नागड। शक्ति कुण्डलिनी विद्यां यत्कायं तव सिद्धयति // 7 // ततः पश्चात् समागत्य नागडोऽसाधयच्च ताम् / शक्तिरूपो वरो दत्तः तया देव्याऽस्य तुष्टया // 7 // | // 8 //

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