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सबकी चिन्ता एक विद्वान से किसी ने कहा- आप बेकार में परेशान क्यों होते हैं ? आप दुनिया को चिन्ता छोड़कर अपनी चिन्ता कीजिए।"
विद्वान ने गंभीर, साथ ही प्रसन्न वाणी में कहा-“सबकी चिन्ता में मेरी चिन्ता आ ही जाती है।"
मर्द कहाँ वे जो निज मुख से
कहते थे, सो करते थे। अपने प्रण की पूर्ति-हेतु जो
हंसते-हँसते मरते थे। गाड़ी के पहिए की मानिंद
पुरुष वचन-चल आज हुए। सुबह कहा कुछ, शाम कहा कुछ,
टोका तो नाराज हुए।
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अमर डायरी
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