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जब-जब वहभव्य आदर्श सोनीचे उतरता है, अपोजीवन-स्तर को नीचे गिसताः हैं तब-तब वहा प्रत्येक क्षणाअपना अपघात करता है ।।
एक विचारक ने कहा है-“शीलं परं भूमणम्"_“जीका काः भूषण शील-सदाचार हैं।" सादाचार क्या है? क्षमा, सहिष्णुता, सेवा और समर्पण ! हमारे जीवन के ये ही तो सच्चे श्रृंगार हैं। __ स्वीडन के राजा की बहन युजिनी ने अपने हीरे मोती के अलंकार बेचकर गरीबों के लिए एक दवाखाना खुलवाया। __एक दिन युजिनी अपने दवाखाने में गई, उसने देखा कि एक रोगी रोग मुक्त होकर हँसता हुआ अपने घर जा रहा है। युजिनी को देखते ही उस गरीब की आँखों में आधार के आँसू छलक उठे। युजिनी ने मन ही मन कहा- वे ही मेरे हीरे मोती के अलंकार है।"
गरीब के चेहरे पर खेलती हुई प्रसन्नता की रेखा हमारे जीवन में स्वर्णरेखा बन जाती है, यदि उस प्रसन्नता में हमारी सेवा का निर्मल निमित्त हो तो !
क्रोध राक्षस से भी भयंकर है। राक्षस तो दूसरों का ही रक्त पीता है परन्तु क्रोध तो अपना और पराया-दोनों का रक्त पीता है। कहते हैं, राक्षस की उपस्थिति एवं प्रतीति रात्रि में होती है, परन्तु क्रोध की तो रात्रि और दिन दोनों समय ही नृत्य-क्रिया होती रहती है।
तू देह नहीं, देहातीत आत्मा है । देह पुद्गल की है, सो पराई है । पराई वस्तु को अपना मत कह । पराई वस्तु को अपना बनाने का प्रयत्न करना चोरी है। किसी मित्र के घर में कुछ दिन के लिए आकर ठहरा है तो उस घर को अपना मत समझ ! सार सँभाल एवं सहानुभूति रखना और बात है, मगर अपना समझना भयंकर भूल है। अवसर आने पर प्रसन्नतापूर्वक घर छोड़ने को तैयार रह, वर्ना बेइज्जती से निकलना होगा, एक दिन निकलना तो होगा ही।
अमर डायरी
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