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आज मनुष्य बहिर्दृष्टि होकर चल रहा है, वह अपनी भूलों, गलतियों और दोषों से आँख-मिचौनी कर रहा है। दूसरों के जीवन में छिद्र देखता है, दोष ढूँढ़ता है। ___ जब जीवन में अन्तर्दृष्टि आती है, तो आनन्द आता है, उज्ज्वलता आती है। वह अपने अन्तर में भ महावीर का दर्शन करता है चौबीसी का, नहीं-नहीं अनन्त चौबीसी का दर्शन करता है । देव, गुरु-धर्म को भी अपने ही अन्तर में देखता है । वह ज्यों-ज्यों आत्म सागर की अतल गहराई में उतरता है, त्यों-त्यों नये-नये रत्न पाता है। हृदय को जितना माँजता है, उतना ही पवित्र होता है। .. वह जब बाहर की ओर झाँकता है, तो उसे संसार में दोष ही दोष नजर आते हैं, और वह जिन दोषों को दूसरों में देखता है, एक दिन स्वयं भी उनका शिकार हो जाता है। ! जीवन एक दर्पण है। दर्पण के सामने जैसा बिम्ब आता है, उसका प्रतिबिम्ब दर्पण में अवश्य पड़ता है । जब आप दूसरों के दोषों का दर्शन करेंगे, चिंतन और स्मरण करेंगे तो उनका प्रतिबिम्ब आपके मनो रूप दर्पण पर अवश्य चित्रित होता रहेगा। प्रकारान्तर से वे ही दोष चुपचाप आपके जीवन में अंकुरित हो जाएँगे। इसीलिए भ. महावीर का यह अमर-सूत्र हमें सर्वदा स्मरण रखना चाहिए
संपिक्खए अप्पगमप्पएणं सदा अपने से अपना निरीक्षण करते. रहना चाहिए। दृष्टि को मूंद कर अन्तर्दृष्टि से देखना चाहिए । आत्मा का अनन्त सौंदर्य दिखाई पड़ेगा। धर्म की सार्थकता __वह धर्म क्या, जो जीवन के कण-कण में न रम सके? वह धर्म क्या जो परिवार, समाज और राष्ट्र को जीने की कला नहीं सिखा सके?
जैन-धर्म ने बताया है कि धर्म वह है जो जीवन के हर क्षेत्र को पवित्र कर दे। धर्म वह सुगंध है जिसको जहाँ भी रखो, महक देगा। जीवन की हर साँस और धड़कन में मुखरित होगा। अमर डायरी
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