Book Title: Amar Diary
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 171
________________ जामवन्त ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा--जिस मनुष्य के जीवन में उत्साह नहीं है, शक्ति और स्फूर्ति नहीं है, वह व्यक्ति हजारों-हजार वर्ष बिता देने पर भी लंका नहीं पहुँच सकता । परन्तु जिसके बाहु में बल है, पैरों में शक्ति है, मन में उत्साह है और जीवन में तेज है वह कुछ ही क्षणों में लंका की दूरी तो क्या, ससागरा पृथ्वी को भी एक छोर से दूसरे छोर तक नाप सकता है। आप यह मत पूछिए कि लंका कितनी दूर है; बल्कि यह पूछिए कि हमारे अन्दर कितना उत्साह है, कितना साहस और कितना तेज है ! जामवन्त ने राम के समक्ष जीवन के जिस सनातन सत्य को उघाड़ कर रखा, वह आज भी हमारे सामने स्पष्ट है--किसी कठिनतम कार्य को साधते हुए कार्य की दुष्करता किंवा उसकी विशालता को नहीं देखना चाहिए, किन्तु अपना उत्साह व साहस देखना चाहिए। यदि आपके मन में साहस का स्रोत बह रहा है, तेज और बल है तो निश्चित ही आप उस दुष्कर कार्य को सुकर कर लेंगे। सफलता आपके हाथों में होगी। इच्छा-योग की साधना जैन धर्म की साधना इच्छा-योग की साधना है...सहज योग की साधना है। जिसः साधना में बल-प्रयोग हो, वह साधना निर्जीव बन जाती है। साधना के महापथ पर अग्रसर होने वाला साधक अपनी शक्ति के अनुरूप ही प्रगति कर सकता है। साधना की जाती है, लादी नहीं जा सकती। संसार में जैन ध अहिंसा का, शान्ति का, प्रेम का और मैत्री का अमर सन्देश लेकर आया है। उसका विश्वास व में है, तलवार में नहीं। उसका धर्म आध्यात्मिकता में है, भौतिकता में नहीं । साधना का मौलिक आधार यहाँ भावना है। श्रद्धा है। आग्रह और बलात्कार को यहाँ प्रवेश नहीं है । जब साधक जाग उठे, तभी से उसका सबेरा समझा जाता है । सूर्य-रश्मियों के संस्पर्श से कमल -... -.- ... - : - - 16217 अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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