Book Title: Amar Diary
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 183
________________ श्रमण-संस्कृति श्रमण-संस्कृति की गम्भीर वाणी हजारों वर्षों से जन-मन में गूँजती आ रही है कि यह अनमोल मानव-जीवन भौतिक जगत् की अँधेरी गलियों में भटकने के लिए नहीं है, भोग-विलास की गन्दी नालियों में कीड़ों की तरह कुलबुलाने के लिए नहीं है । मानव ! तेरे जीवन का लक्ष्य तू है, तेरी मानवता है। वह मानवता, जो हिमालय की बुलन्द चोटियों से भी ऊँची तथा महान् है । क्या तू इस क्षणभंगुर संसार की पुत्रैषणा, वित्तैषणा और लोकैषणा की भूली- भटकी, टेड़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर ही चक्कर काटता रहेगा ? नहीं, तू तो उस मंजिल का यात्री है, जहाँ आगे और चलना शेष ही नहीं रह जाता " इस जीवन का लक्ष्य नहीं है, श्रान्ति-भवन में टिक रहना, किन्तु पहुँचना उस सीमा तक, जिसके आगे राह नहीं।" महान् संस्कृति ------ आज सब ओर अपनी-अपनी संस्कृति और सभ्यता की सर्वश्रेष्ठता के जयघोष किए जा रहे हैं। मानव संसार संस्कृतियों की मधुर कल्पनाओं में एक प्रकार से पागल हो उठा है। विभिन्न संस्कृतियों एवं सभ्यताओं में परस्पर रस्सा-कशी हो रही है। किन्तु कौन संस्कृति श्रेष्ठ है, इसके लिए एक मात्र एक ही प्रश्न काफी है। यदि उसका उत्तर ईमानदारी से दे दिया जाय तो । यह प्रश्न है कि क्या आपकी संस्कृति में बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की मूल भावना विकसित हो रही है, व्यक्ति स्वपोषणवृत्ति से विश्व-पोषण की मनोभूमिका पर उतर रहा है, निराशा के अन्धकार में शुभाशा की किरणें जगमगाती आ रही है, प्राणिमात्र के भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन के निम्न धरातल को ऊँचा उठाने के लिए कुछ-न-कुछ सत्प्रयत्न होता रहा है ? यदि आपके पास इस प्रश्न का उत्तर सच्चे हृदय से "हाँ" में है, तो आपकी संस्कृति निःसन्देह श्रेष्ठ है। वह स्वयं ही विश्व संस्कृति का गौरव प्राप्त करने के योग्य है। जिसके आदर्श विराट् एवं महान् हो, जो जीवन के क्षेत्र में व्यापक एवं उदार दृष्टिकोण का समर्थन करती हो, 174 अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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