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शिष्य ने कहा-महाराज ! वह मुझ से तो नहीं पकड़ा जायगा।
गुरु ने फटकारा-~मूर्ख ! इतना हट्टा-कट्टा है, और कम्बल भी नहीं पकड़ा जा सकता, अच्छा मैं जाता हूँ। गुरु ने छलांग मारी, उसे पकड़ा तो वह कम्बल नहीं, रीछ था। गुरु ने ज्यों ही उसे पकड़ा, उसने गुरु को पकड़ लिया।
अब गुरु अपना पिण्ड छुड़ाने के लिए छटपटाने लगे। शिष्य को साफ दिख नहीं रहा था, उसने दूर से आवाज लगाई–गुरुजी कम्बल छोड़ दो, रहने भी दो
और कहीं से माँग लेंगे। ___ गुरु ने कहा-मैं तो कम्बल को छोड़ना चाहता हूँ, किन्तु कम्बल ही मुझे नहीं छोड़ रहा है।
यही हालत मनुष्य (आत्मा की) की हो रही है। विकारों में गहरा फँस जाने के बाद वह उनसे छुटकारा पाने के लिए छटपटाता है, किन्तु तब तक विकारों का रीछ उसे पकड़ लेता है, और फिर छुड़ाए भी नहीं छूट पाता। . ज्योतिष का चक्कर
मनुष्य का अपने आप पर से विश्वास उठता जा रहा है। वह बातें तो करता है कि सृष्टि का वही सबसे शक्तिशाली जीव है, उससे बड़ा संसार में अन्य कोई नहीं है, किन्तु थोड़ी-सी हल्की बीमारी आई कि भागता है पीर-पैगम्बरों के द्वार पर, भूत-प्रेतों के डोरे करवाता है, या किसी तिलकधारी ज्योतिषी को ग्रह दिखाने दौड़ता है। मांगलिक वचन सुनकर बाहर निकले और बिल्ली राह काट गई तो बस जीवन की गति अवरुद्ध । किसी शुभ कार्य के लिए चले, और यदि किसी ने छींक दिया, या कुत्ते ने कान फड़फड़ा दिया तो बस, सब शुभ संकल्प विलीन हो गए। क्या बिल्ली, कुत्ते या छींक में इतनी ताकत है कि उसके सामने आपके मांगलिक स्तोत्र, शुभ संकल्प और आत्म-विश्वास हवा हो जाएँ? यदि कोई गधा दाएँ-बाएँ निकल गया तो बस आपका भाग्य ही बदल गया।
अमर डायरी
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