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स्त्रोत रूप में भारत की संस्कृति एक होकर भी धारा रूप में अनेक है । वेद मार्ग से बहने वाली धारा, वैदिक संस्कृति है । पिटक मार्ग से बहने वाली धारा, बौद्ध संस्कृति है। आगम मार्ग से बहने वाली धारा, जैन संस्कृति है। भारत की संस्कृति मूल में एक होकर भी वेद, बुद्ध और जिन रूप में वह त्रि-धाराओं में प्रवाहित है । वेद दान का, बुद्ध दया का, और जिन दमन का प्रतीक है। अपने मनोविकारों को दमित करने वाला विजेता होता है, जिनेश्वर होता है। जिनेश्वर देव की संस्कृति ही वस्तुत: विजेता की संस्कृति है।
शक्ति का स्त्रोत : ब्रह्मचर्य जीवन में शक्ति-संचय करना चाहिए। शक्ति से सिद्धि मिलती है । कमजोर आदमी न संसार को साध सकता है, न मोक्ष को। आप कहेंगे, अध्यात्मवाद की बात करते-करते आपने भौतिकवाद की बात कह दी, किन्तु आप सही मानिए जैन-धर्म जितना अध्यात्मवादी है, यहाँ आकर वह उतना ही भौतिकवादी बन गया है। उसने सिद्धि की ओर प्रस्थान किया तो ९९९ बातें आत्मा की कही हैं, किन्तु एक बात बिल्कुल शरीर के लिए कही है और वह यह है कि मोक्ष के लिए सब कुछ तैयार होने पर भी यदि शरीर का संहनन 'वजऋषभनाराच' नहीं है तो उसे मुक्ति नहीं मिल सकती। __ जैन धर्म ने कहा है-बौना और कुरूप व्यक्ति मुक्ति में जा सकता है, लूला
और लंगड़ा व्यक्ति मुक्ति में जा सकता है, किन्तु जिसकी रचना ही कमजोर है, संहनन खराब है वह मोक्ष के लिए इतना बड़ा संकल्प और पराक्रम नहीं कर सकता, इसलिए उसने शरीर की शक्ति को एक बहुत बड़ी और आवश्यक शक्ति माना है। उस शक्ति-संचय का मुख्य साधन ब्रह्मचर्य माना गया है। जीवन में ब्रह्मचर्य की सबसे बड़ी उपयोगिता यही है कि वह शक्ति का अक्षय भंडार है। जिस बीवन में शक्ति है, बल है. ओज है, पराक्रम है, वह जीवन है। भ. महावीर ने कहा है
अमर डायरी
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