Book Title: Amar Diary
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 178
________________ का कर्म के साथ और कर्म का ज्ञान के साथ मेल बैठाकर संसार में मधुरता का प्रचार तथा सरसता का प्रसार करने वाली है। भारतीय संस्कृति का अर्थ है-विश्वास, विचार और आचार की जीती-जागती महिमा । भारत की संस्कृति का अर्थ है-स्नेह, सहानुभूति और सहयोग। इस संस्कृति का संलक्ष्य है-सान्त से अनन्त की ओर जाना, अंधकार से प्रकाश की ओर जाना, भेद से अभेद की ओर जाना, कीचड़ से कमल की ओर जाना । असुन्दर से सुन्दर की ओर जाना, विरोध से विवेक की ओर जाना। भारत की संस्कृति का अर्थ है-राम की पवित्र मर्यादा, कृष्ण का तेजस्वी कर्मयोग, महावीर की सर्वक्षेमकरी अहिंसा एवं विरोधों का समन्वय भूमि अनेकान्त, बुद्ध की मधुर-करुणा एवं विवेकयुक्त वैराग्य और गाँधी की धर्मानुप्राणित राजनीति एवं सत्य का प्रयोग। अत: भारतीय संस्कृति के सूत्रधार है—राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध और गाँधी। स्त्रोत एक, धारा अनेकः । भारत की संस्कृति का मूल स्त्रोत है—“दयतां, दीयतां, दम्यताम् ।” इस एक ही सूत्र में समग्र भारत की संस्कृति का निस्यन्द आ गया है। जहाँ दया, दान और दमन है, वहीं पर भारत की संस्कृति की मूल आत्मा है । यह संस्कृति भारत के जन-जन की और भारत के मन-मन की संस्कृति है। भारत की संस्कृति का मूल स्त्रोत है—दया, दान और दमन । प्राण-प्राण के प्रति दया करो, मुक्त-भाव से दान करो और अपने विचारों का दमन करो। भारत के जन-जन के मन-मन में दया, दान एवं दमन रमा है, पचा है । वेदों ने इसी को गाया, पिटकों ने इसी को ध्याया और आगमों ने इसी को जन-जीवन के कण-कण में रमाया। क्रूरता से मनुष्य को सुख नहीं मिला, तब दया जागी । संग्रह में मनुष्य को शान्ति नहीं मिली, तब दान आया और भोग में मनुष्य को चैन नहीं मिला, तब दमन आया। विकृत जीवन को संस्कृत बनाने के लिए भारतीय संस्कृति के भण्डार में दया, दान और दमन से बढ़कर अन्य धरोहर नहीं है, अन्य सम्पत्ति नहीं है। अपने अमर डायरी 169 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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