Book Title: Amar Diary
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 177
________________ साधना है । संस्कृति उस पथ का साध्य है। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का संवर्धन बिना संस्कृति के नहीं हो सकता। __संस्कृति मनुष्य की विविध साधनाओं की सर्वश्रेष्ठ तथा सर्वज्येष्ठ परिणति कही जा सकती है। संस्कृति एक अविरोधी तत्व है। वह समस्त विरोधों में सामञ्जस्य स्थापित करती है। नाना प्रकार की धर्म-साधना, कलात्मक प्रयत्न, भोग-मूलक अनुभूति और अपनी तर्क-मूलक कल्पना शक्ति से मनुष्य उस महान् सत्य के व्यापक तथा परिपूर्ण स्वरूप को अधिगत करता जा रहा है, जिसे संस्कृति कहते हैं। संस्कृति की सर्व सम्मत परिभाषा अभी तक नहीं बन सकी है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी रुचि और विचार के अनुसार इसका अर्थ कर लेता है। संस्कृति का अर्थ है-मनुष्य की जय-यात्रा । मनुष्य अपनी साधना के बल पर विकृति से संस्कृति और संस्कृति से प्रकृति की ओर निरन्तर गतिशील रहता है। जीवन में विकृति है, इसलिए संस्कृति की आवश्यकता है। परन्तु संस्कृति को पाकर ही मनुष्य की जय-यात्रा परिसमाप्त नहीं हो जाती । उसे आगे बढ़कर प्रगति को, अपने स्वभाव को प्राप्त करना होगा। यहाँ संस्कृति का अर्थ है-आत्म शोधन । संस्कृति के ये विविध रूप और नाना अर्थ आज के साहित्य में उपलब्ध होते हैं। संस्कृति एक विशाल महासागर है। भारत की संस्कृति भारतीय संस्कृति की विशेषता उसके आचार भूत स्वतन्त्र चिन्तन में, सत्य की शोध में और उदार व्यवहार में रही है । युद्ध जैसे दारुण अवसर पर भी यहाँ के चिन्तकों ने शान्ति की सीख दी है । वैर के बदले प्रेम, क्रूरता के बदले मृदुता और हिंसा के बदले अहिंसा दी है। भारतीय संस्कृति की अन्तरात्मा है-विरोध में भी विनोद, विविधता में भी समन्वय बुद्धि, सामञ्जस्यपूर्ण दृष्टिकोण । भारतीय संस्कृति हृदय और बुद्धि की पूजा करने वाली उदार भावना और विमल परिज्ञान के भोग के जीवन में सरसता और मधुरता बरसाने वाली है। यह संस्कृति ज्ञान 168 अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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