Book Title: Amar Diary
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 175
________________ विशिष्ट विद्वान् तक आज संस्कृति पर बोलते हैं, संस्कृति पर लिखते हैं। परन्तु संस्कृति की परिभाषा आज तक भी स्थिर नहीं हो सकी है। संस्कृति क्या है ? विद्वानों ने विभिन्न पद्धतियों से इस पर विचार किया है ? आज भी विचार चल ही रहा है, संस्कृति की सरिता के प्रवाह को बाँधने का प्रयत्न तो बहुत किया गया हैं, पर उसमें सफलता नहीं मिल सकी है। भारत के प्राचीन साहित्य में धर्म, दर्शन और कला की चर्चा तो बहुत है, पर संस्कृति में सर्वत्र संस्कृति ही मुखर हो रही है। उसने अपने आप में धर्म, दर्शन और कला तीनों को समेट लिया है। संस्कृति में क्या नहीं है ? उसमें आचार की पवित्रता है, विचार की गम्भीरता है और कला की प्रियता एवं सुन्दरता है । अपनी इसी अर्थ-व्यवस्था के आधार पर संस्कृति ने धर्म, दर्शन, कला- तीनों को आत्मसात कर लिया है। जहाँ संस्कृति है, वहाँ धर्म होगा ही । जहाँ संस्कृति है, वहाँ दर्शन होगा ही। जहाँ संस्कृति है, वहाँ कला होगी ही । भारत के अध्यात्म साहित्य में संस्कृति से बढ़कर अन्य कोई शब्द व्यापक, विशाल और बहु अर्थ का अभिव्यञ्जक नहीं है । कुछ विद्वान संस्कृति के पर्यायवाची रूप में संस्कार, परिष्कार और सुधार, शब्द का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह उचित नहीं है। संस्कृति की उच्चता, गम्भीरता और पवित्रता को धारण करने की सामर्थ्य इन तीनों शब्दों में से किसी में भी नहीं है। अधिक से अधिक खींचातानी करके संस्कार, परिष्कार एवं सुधार शब्द से आचार का ग्रहण तो कदाचित् किया भी जा सके, परन्तु विचार और कला की अभिव्यक्ति इन शब्दों से कथमपि नहीं हो सकती। संस्कृति शब्द से धर्म, दर्शन और कला- तीनों की अभिव्यक्ति की जा सकती है। संस्कृति एक बहती धारा है। जिस प्रकार सरिता का प्राण तत्व है, उसका प्रवाह । ठीक उसी प्रकार संस्कृति का प्राण तत्व भी उसका सतत प्रवाह है। संस्कृति का अर्थ है-- निरन्तर विकास की ओर बढ़ना । संस्कृति विचार, आदर्श, भावना एवं संस्कार प्रवाह का वह संघटित एवं स्थिर संस्थान है, जो मानव को अमर डायरी www.jainelibrary.org 166 Jain Education International For Private & Personal Use Only

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