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किसी भी प्रतीक की पूजा, सत्संग केवल जड़-पूजा है । जड़-श्रद्धा है । जिस दिन जीवन में धर्म प्रकट होगा उसी दिन धर्म की सच्ची पूजा होगी। ट्रेड मार्क ___ एक दिन एक विचारवान् संत से किसी ने पूछा-आपका शास्त्र क्या है? पंथ क्या है? ___ संत कुछ देर मौन रहा फिर हँसा और बोला-जो कुछ हूँ सो मैं ही हूँ, मैं ही मेरा ग्रंथ हूं, मैं ही मेरा पंथ हूँ और मैं ही मेरा संत हूँ । याने मेरे भीतर का 'संत' ही मेरा ग्रंथ और पंथ है। __उस संत के शब्दों से यह स्पष्ट है कि मनुष्य का विचार और आचरण यह जाहिर कर देते हैं कि वह किस पथ का पथिक है । जिस प्रकार हमारे भारतवर्ष में अलग-अलग संप्रदायों के तिलक, जटा, दंड आदि अनेक 'ट्रेडमार्क' होते हैं, जिसे देखते ही पहचान लिया जाए कि यह किस पंथ व संप्रदाय का मानने वाला है, उसी प्रकार 'संत' का सबसे बड़ा 'ट्रेड मार्क' उसका आचार और विचार ही होता है। न्याय की भाषा में यही उसका लक्षण' है। शिक्षा का तरीका __ अज्ञान मनुष्य भूल करता है, भूल करना स्वभाव नहीं किन्तु सहज जरूर है। परन्तु जो स्वयं को ज्ञानवान् मानता है उसका यह ज्ञान ठीक नहीं कि वह दूसरों की भूलों पर हँसे, निन्दा और घृणा फैलाए । भूल जताने में भी अवहेलना और आत्मा को कुचलना नहीं चाहिए । उसकी आत्मा को बड़े हल्के और मधुर ढंग से सहला कर जागृत करना चाहिए ताकि वह शिक्षा की ताजी हवा से नयी ताजगी और नया जीवन पाकर खिल सके, महक सके। उपादान की शुद्धि
साधना की दृष्टि से उपादान का शुभ होना अनिवार्य है । यदि उपादान (मूल आत्मा) शुभ है तो अशुभ निमित्त मिलने पर भी वह लक्ष्य-भ्रष्ट नहीं होता, किन्तु उस अशुभ से भी शुभ की ओर बढ़ता जाता है । जैसे गज सुकुमाल को सोमिल
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अमर डायरी
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