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बालक ने कहा- दो घण्टे में ।
यह कैसे ? एक घण्टे में पूरा होने वाला काम तो दोनों के मिलने से आधा घण्टा में ही हो जाना चाहिए ।
बालक ने उत्तर दिया- वस्तुतः काम तो आधा घण्टे में ही पूरा हो जाएगा, किन्तु उस काम को प्रारम्भ करने से पहले जो कहा-सुनी और वाद-विवाद होगा, एक-डेढ़ घण्टे का समय तो उसी में लग जाएगा।
बालक का यह उत्तर मजाक लग सकता है, किन्तु यह मजाक आज हर घर में हो रहा है; हमारे सामने काम करने की कठिनाई नहीं है, किन्तु कठिनाई यही है कि हम सब एक मत नहीं हो पाते । सामान्य - सी बात पर भी इतने मत-भेद, इतनी बहस बाजी कि काम एक कोने में पड़ा रहता है, और पूरा समय और शक्ति वाद-विवाद में ही बर्बाद हो जाता है ।
काम करने का तरीका यह है कि जो काम करना है, उसके विषय में शीघ्र ही निर्णय करले, और पूरी शक्ति के साथ उसमें जुट जाएँ। काम में बेकाम की बातें न करें, किन्तु परस्पर सहयोगी बनकर चलें । तोल नहीं, मोल
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जैन- दर्शन की एक विशेषता यह है कि वह हर वस्तु को बड़ी पैनी दृष्टि से देखता है। वह वस्तु के आकार, संख्या, या नाम-तोल पर नहीं चलता, किन्तु उसके मोल पर विश्वास करता है। नाप-तोल में एक पत्थर भी काफी लम्बा-चौड़ा और भारी-भरकम हो सकता है, फिर भी वह प्रकाशमान छोटे से हीरे की बराबरी नहीं कर सकता । तोल की दृष्टि से पत्थर बड़ा होता है, किन्तु मोल की दृष्टि से हीरे का ही मूल्य अधिक होता है ।
जैन-धर्म आप से यह नहीं पूछता कि आपने कितना दान दिया, कितनी सामायिक की या कितना तप किया है ? वह तो उसका मोल-मूल्यांकन करता
अमर डायरी
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