Book Title: Amar Diary
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra
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मातृभूमि का प्रेम
भारतवर्ष की मिट्टी में यह विशिष्टता रही है कि वह माता और मातृ-भूमि को स्वर्ग से भी अधिक प्यार करती है। यहाँ मातृभूमि की मिट्टी को चन्दन मानकर तिलक किया जाता है । पानी को गंगा जल मानकर पूजा जाता है और मातृभूमि के हर वृक्ष को भाई की तरह प्यार किया जाता है ।
जोधपुर के महाराज यशवन्तसिंह जी एकबार जब युद्ध की इच्छा से काबुल की ओर जा रहे थे, मार्ग में एक टीले पर हरेभरे फोग के पौधे को देखकर प्रसन्नता से फूल उठे, घोड़े से नीचे उतर कर उसे सगे भाई की तरह आलिंगन में कस लिया और भाव भरे शब्दों में कहने लगे
“सुणरे देशी रूंखज, म्हे परदेशी लोग । म्होंने अकबर तेडिया, तूं कित आयो फोग ।।
“हम तो दिल्लीश्वर की आज्ञा से इधर आ गए, किन्तु तुम यहाँ कैसे आ गए ?”
इस प्रकार मातृ-भूमि के पेड़-पौधों और हर वस्तु को उन्होंने बड़े प्रेम, स्नेह और श्रद्धा की दृष्टि से देखा है और उसके लिए हर प्रकार का बलिदान किया है ।
धर्म का देवता
मन्दिरों और धर्म - स्थानों में जब भक्तों की जमा भीड़ और उनका भजन-पूजन का बड़ा समारोह देखता हूँ, तो मन में आता है कि ये लोग कितने बड़े धर्मात्मा होंगे, जो सर्दी-गर्मी और भीड़-भाड़ की परवाह किए बिना भक्ति कर रहें हैं । किन्तु जब उन्हें ही घर और दुकान पर कलह, बेईमानी और अत्याचार करते देखता हूँ तो मन सिहर उठता है और सोचता हूँ कि इन्हीं लोगों संसार को धर्म का विरोधी बनाया है, इन्हीं लोगों ने धर्म के प्रति द्वेष और घृणा के भाव फैलाए हैं।
यह बात दिन के उजाले की तरह स्पष्ट मान लीजिए कि जब तक धर्म का देवता जीवन के मन्दिर में नहीं बोलता - तब तक मन्दिर, मस्जिद, स्थानक और
अमर डायरी
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