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का, और सुदर्शन को अभया रानी का अशुभ निमित्त मिला, किन्तु उस वातावरण
और परिस्थिति में भी वे निरंतर शुभ की ओर बढ़ते रहे। ___ यदि उपादान ही अशुभ हो तो कितने ही शुभ निमित्त मिल जाएँ, वह साधना
की ओर बढ़ नहीं सकता। गोशालक और जमालि को भ. महावीर का निमित्त मिला । राजा उदयन को मारने के लिए रत्नसार भट्ट साधु बन कर बाहर वर्ष तक अध्ययन और शास्त्राभ्यास करता रहा—निमित्त शुभ होने पर भी हुआ कुछ नहीं, चूँकि उपादानमूल सत्ता ही अशुभ जो थी। इसलिए आत्मा की पवित्रता पहली बात है। साधनों की पवित्रता से पहले साधक की आत्मा निर्मल और पवित्र होनी अनिवार्य है। तभी साधना की सफलता हो सकती है। समता की साधना
जगत-जाह्नवी के कूल पर खड़ा कोई मनुष्य उसकी शीतल लहरों से आनन्द उल्लास मनाता है, तो कोई व्याकुल भी हो उठता है। विश्व के वायु-मण्डल में अनुकूलता और प्रतिकूलता का स्रोत हमारी अपनी परिस्थितियों के अनुसार बनता है। एक ही चीज दो भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न रूप में आती है, इसमें वस्तु का दोष नहीं, किन्तु हमारी भावना और उनसे बनी परिस्थितियों की सापेक्षता ही इसके लिए उत्तरदायी होती है।
किसी व्यक्ति के दो लड़कियाँ थीं-एक माली को ब्याही हुई थी और दूसरी धोबी को । एक बार उसने अपनी एक लड़की से कुशल समाचार पूछा तो उसने बताया, सब कुछ तो ठीक है लेकिन वर्षा नहीं है, बाग सूखा जा रहा है, आप भक्ति बहुत करते हैं, अत: एक माला वर्षा के लिए मेरी ओर से भी फेर लिया करें।
दूसरी लड़की से पूछा तो बताया-यूँ तो सब अच्छा ही है। कपड़े धुलने को आए हैं, वर्षा न आए, कड़ी धूप पड़े तो अच्छा है-आप भी भगवान से यही प्रार्थना करिए।
पिता के लिए सास्या यह है कि वह किसकी भलाई के लिए माला फेरे ? जिससे एक की भलाई है उसी से दूसरे की बुराई भी है। अनुकूलता और
अमर डायरी
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