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हैं तो वह मौन-व्रत सही है, अन्यथा वह वाणी का अभाव है। उस स्थिति में पृथ्वी भी मौन पड़ी रहती है, पहाड़ भी मौन हैं, निद्रा या बेहोशी में सोया आदमी भी मौन रहता है, गूंगा आदमी भी मौन रहता है। किन्तु वह मौन-व्रत नहीं है। जैन कौन?
एक प्रश्न बहुधा उठता है कि 'जैन एवं 'जिन' में क्या अन्तर है ? और इनका क्या अर्थ है ? इस सम्बन्ध में विचार यह है कि मिथ्यात्व, कषाय आदि भावों के विजेता को 'जिन' कहा गया है, और उस 'जिन भाव' की आराधना करने वाला 'जैन' है । जैन न कोई जाति है और न कोई बाना है। वह तो जिनत्व की साधना है। जिस आत्मा में जितने अंश में जिनत्व जागृत हुआ वह उतने अंश में जैन है । ऐसी बात नहीं है कि जिन भाव' सिर्फ १३वें या १४ वें गुणस्थान में पहुँचने पर ही होता है। स्व के बोध होने पर और आत्मा की शक्ति पर विश्वास जागृत होने पर वह चतुर्थ गुणस्थान से ही प्रारम्भ हो जाता है। श्रद्धा, विश्वास और आत्म-ज्ञान के लिए पुरुषार्थ की यही पहली मंजिल भी जिनत्व की मंजिल है, और इस पर आने वाला हर आत्मा 'जैन' है। एक झटका है
रामायण के एक कथानक के अनुसार हनुमान जैसा वीर मेघनाद के नागपाश (ब्रह्म पाश) में बँध जाता है, रावण उसे अनेक जलीकटी सुनाता है, और तब हनुमान एक झटका लगाकर नागपाश को तोड़कर मुक्त हो जाता है। नागपाश की अजेय शक्ति के सम्बन्ध में हनुमान के मन में संस्कार जमे थे, उसके सामने उसे अपनी शक्ति तुच्छ लगी इसलिए वह बँध गया, किन्तु जब उसे अपनी शक्ति पर भरोसा आया-आत्मा में साहस का स्रोत उमड़ा तो एक ही झटके में नागपाश के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। ___ यह स्थिति रामायण के एक हनुमान की नहीं, किन्तु प्रत्येक आत्मा की है। प्रत्येक आत्मा एक हनुमान है, और वह माया, प्रकृति या कर्मों के नागपाश में बँधा है। जब तक वह बंधन की शक्ति के समक्ष अपने को हीन समझता है तब तक उसका कैदी बना रहता है। किन्तु जिस दिन उसने अपनी अनन्त शक्ति पर
अमर डायरी
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