________________
हैं—वे ये हैं कि पहले वे बाल-गोपाल भोजन करने के अधिकारी हैं, जो छोटी-छोटी इकन्नियों, दुअन्नियों के रूप में घर में घूम रही हैं, और जिन्हें एक दिन रुपया बनना है। वह चाहे मुन्ना हो या मुन्नी, उस परिवार और घर में दोनों का बराबर अधिकार है । इसके बाद दूसरा नम्बर आता है बड़े-बुड्ढों का जो घर में दादा-दादी, माता-पिता के रूप में बैठे हैं, या कोई घर में बीमार बैठा हो तो उसका नम्बर आता है।
इसके बाद घर के उन भाई और बहनों, स्त्री और पुरुषों का नम्बर आता है, जो पूर्ण स्वस्थ हैं, घर के सदस्य हैं, और जो कमाते भी हैं, परिश्रम भी करते हैं, .. और किसी भी प्रकार से घर की अभिवृद्धि या उन्नति एवं अवनति के हिस्सेदार
सबसे पीछे नम्बर आता है, घर की उस मालकिन का जो घर का संचालन करती है, परिवार की व्यवस्था रखती है कि इस मन्दिर में कोई देवता बिना भोग लगे तो नहीं रहा है। पुराने जमाने में यह मान्यता थी कि यदि घर में काई भूखा सोता है तो उसका पाप घर के मालिक को लगता है। ___ भारत की संस्कृति में हमेशा से यही बात सिखाई जाती रही है कि बाँटकर खाओ, खिलाकर खाओ। कर्मयोगी श्री कृष्ण ने कहा
अघं स केवलं भुंक्ते य: पचत्यात्म कारणात् “जो केवल अपने लिए ही पकाता, दूसरों को उसमें से प्रेम पूर्वक़ हिस्सा नहीं देता—वह रोटी नहीं खाता बल्कि पाप खाता है । वह पेट में भोजन नहीं डालता बल्कि पाप उड़ेलता है।" भगवान् महावीर ने बार-बार उद्घोष किया
छंदिय साहम्मियाण भुजे
असंविभागी नहु तस्स मुक्खो' “साथियों में बाँटकर खाओ। बिना बाँटकर अकेला खाने वाला मोक्ष नहीं जा सकता।"
छा
134
अमर डायरी www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only