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यह सब उपदेश स्वास्थ्य और आरोग्य की ही दृष्टि से नहीं बल्कि अध्यात्म की दृष्टि से भी आवश्यक है। अहिंसा और मानवता ___ मैं अहिंसा को मानवता कहता हूँ और मानवता को अहिंसा। आप अगर जीवन के क्षेत्र में ठीक ढंग से विचार करें तो मैं कहूँगा कि मनुष्य की जो शुद्ध मानवता है वह कोमलता की भित्ति पर ही टिकी हुई है, और कोमलता मनुष्य के आधार पर खड़ी है। हम इन दोनों को अलग-अलग करके नहीं चल सकते । जब कभी इस देश में यह विचार जीवन में मिश्रित हो जाएगा, तब मानवता के कल्याण के लिए हमें उपदेश करना नहीं पड़ेगा। शान्ति, समृद्धि और प्रेम की आकांक्षाएँ स्वत: सफल होंगी, उस दिन मानवता मुस्करा उठेगी। जीवन की त्रिपुटी
नयी पीढ़ी के पहरेदारों और नये जमाने के सूत्रधारों को यह बात समझ लेनी चाहिए कि उन्हें जीवन में देवत्रयी का रूप बनना पड़ेगा । समाज, राष्ट्र और धर्म की जो सड़ी-गली, जीर्ण-शीर्ण मान्यताएँ हैं, निष्प्राण परम्पराएँ हैं, उन्हें उखाड़ फेंकना होगा, उनके विध्वंश के लिए महादेव (रुद्र) का रूप धारण करना पड़ेगा।
और जो इसके साथ नया सर्जन, नया निर्माण होने वाला है, उसके लिए उन्हें ब्रह्मा बनकर खड़ा होना होगा। इसी के साथ जो जीवन, परिवार, समाज, राष्ट्र और धर्म के लिए हितकर हैं, जिसमें प्राण हैं, तेजस्विता है, उस तत्त्व की रक्षा के लिए विष्णु का विराट रूप धारण करना होगा । ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में जीवन की यह देवत्रयी है--उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य की परम्परा में युवक शक्ति को अपने जीवन को ढालना होगा। निर्माण, संरक्षण और विनाश की यह त्रिपुटी जीवन को नयी शक्ति और तेजस्विता देगी, आने वाली पीढ़ी इसके लिए अपने आपको तैयार कर लें। सुधार और उद्धार
सुधार और उद्धार में एक अन्तर है, संशोधन और निर्माण में भेद है । क्रान्ति और विकास में फर्क है । कुछ लोग सुधार चाहते हैं और कुछ लोग उद्धार, कुछ
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अमर डायरी
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