Book Title: Amar Diary
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 137
________________ वह इन्सान है, इन्सानों के बीच रह सकता है, उसके हृदय में अपने गाँव के प्रति, पड़ोसी के प्रति प्रेम व स्नेह है, वह जहाँ भी रहेगा, प्रेम, स्नेह व सहयोग का वातावरण बना लेगा । वह आदत का मारा नहीं, परिस्थिति का मारा है । परिस्थिति अच्छी होने पर वह गाँव के लिए बहुत भला कर सकता है। ऐसे आदमियों से गाँव की शोभा है । नौजवानों का समाधान हो गया। और मै समझता हूँ सभी का समाधान हो गया। यह जीवन का दर्शन है, मनुष्य आप भला होता है तो उसके लिए संसार भी भला है, उसके लिए सर्वत्र सुख और शान्ति है। यदि आपकी दृष्टि में अच्छाई है, आपके मन में प्रेम है, तो जगत में आपके लिए सर्वत्र अच्छाइयाँ हैं, प्रेम है । दो अक्ल की कमी तीन प्रकार के मनुष्य बताए गए हैं, एक वे जो स्वत: ही साधना की ओर प्रवृत्त हो जाए। जीवन में जब जिस प्रकार का अवसर आए उसी के अनुरूप दान, शील आदि सत्प्रवत्तियों का आचरण करने लग जाएँ । जल-स्रोत की भाँति स्वतः प्रवहमान रहे। वह प्रथम कोटि का साधक है। मध्यम श्रेणी का पुरुष दूसरे से प्रेरणा पाकर दान, शील, तप और त्याग का आचरण करता है । झरना स्वतः प्रवाहित होता है, किन्तु कुएँ को खोदना पड़ता है। जमीन में कुछ गहरा खोदने पर जल का स्रोत निकल आता है। पहले प्रवृत्त होते हैं, दूसरे प्रेरित होते हैं 1 तीसरी कोटि का पुरुष न प्रवृत्त होता है, न प्रेरित ! वे अन्धे हाथी की तरह क्रोध, मान, माया, लोभ एवं वासना के अन्धकार में इधर-उधर भटकते रहते हैं, न उनमें अपनी बुद्धि होती है, और न वे दूसरे की बुद्धि का उपयोग ही करते हैं । एक राजा ने अपने मन्त्रियों को आदेश दिया कि मेरी कन्या के लिए ऐसा वर ढूँढ़ो जिसमें सौ तरह की अक्ल हो । मन्त्री तलाश करने लगे। बड़े-बड़े राजकुमारों से भेंट की, किन्तु एक साथ सौ तरह की अक्ल किसी भी राजकुमार में नहीं मिली । सब निराश होकर लौट आए। एक वृद्धि मन्त्री आया और उसने कहा महाराज ! सौ अक्ल तो किसी भी राजकुमार में नहीं मिली परन्तु मैंने एक 128 अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186