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भगवान महावीर ने अनेक पारणे किए, बड़े-बड़े सेठ-साहूकार और सम्राटों के महलों और राजभवनों में उन्हें बहुत ही अच्छे भोजन मिले होंगे, किन्तु उन खीर और मिष्ठान्नों की आज कहीं चर्चा नहीं है, किन्तु चन्दना के बाकुले आज भी याद किए जाते हैं, हर गाँव और हर घर में उसकी कहानियाँ सुनी जाती हैं। उसमें जो पवित्र भावना, श्रद्धा-भक्ति का चमत्कार था, वही उस चन्दन बाला के बाकुलों को अजर-अमर बना गया।
रामायण के पृष्ठ उलटिए राम के विशाल ऐश्वर्य का वर्णन मिलेगा। किन्तु जब भोजन की चर्चा आई तो भीलनी के झूठे बेरों को ही महत्व मिला । राम ने अनेक सम्राटों के राजभवनों में श्रेष्ठ पकवान खाए होंगे। किन्तु इतिहास ने उन्हें भुला दिया, और भीलनी के झूठे बेर भक्तों, कवियों और लेखकों की कलम की नोक पर चढ़कर मधुर बन गए, अजर-अमर हो गए। ___ महाभारत को जरा देखिए, कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के मेवा-मिष्ठान्न को ठुकर दिया और विदुरजी की कुटिया में जाकर केले के छिलके खाए। उन छिलकों में जो मिठास था वह दुर्योधन के पकवानों में कहाँ ! प्रेम, स्नेह एवं आदर की जो मधुरिमा वहाँ मिली, वही आज विदुर के छिलकों को अमर बना गई। ____ भगवान महावीर के अनेक पारणों में से चन्दना के बाकुले का पारणा आज भी ज्योतिर्मय है। राम के अन्य भोजनों पर इतिहास मौन है, किन्तु भीलनी के झूठे बेर आज भी रामायण में चमक रहे हैं श्रीकृष्ण ने सम्राटों के राजभवनों में अनेक भोजन किए होंगे, किन्तु विदुर की शाक-भाजी ही आज भक्तों की जबान पर चढ़ी है
“दुर्योधन की मेवा त्यागी, शाक विदुर घर खायो।”
भारतीय संस्कृति के इन तीनों उदारहणों में एक ही बात दुहराई गई है और वह है-वस्तु की जगह भावना का महत्व । प्रेम और श्रद्धा की अपर विजय ! पर्व का अर्थ
हम लोग पर्व मनाते हैं, और बहुत ज्यादा मनाते हैं । यो पर्व-त्यौहार जिन्दगी में जिन्दादिली और उल्लास के प्रतीक होते हैं, किन्तु उनके पीछे रहा हुआ अभिप्राय भी हमें समझना चाहिए।
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अमर डायरी
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