Book Title: Amar Diary
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 136
________________ और हमारे सामने गाँव की उन्नति की बातें ! लेकिन बाबा के सामने पूछने का साहस किसी ने नहीं किया। ___ कुछ देर में एक दूसरा मुसाफिर आया. नमस्कार करके उसने भी वही बात पूछी, और बूढ़े ने भी वही उत्तर दिया। ___ मुसाफिर ने कहा-मैं यह जानना चाहता हूँ कि इस गाँव के रहने वाले कैसे हैं? बूढ़े मुखिया ने पूछा-तुम जिस गाँव से आ रहे हो वह गाँव कैसा है? ... मुसाफिर ने बताया कि वह गाँव तो स्वर्ग है, वहाँ रहने वाले सभी देवता हैं, प्रेम और सहयोग का स्रोत बह रहा है, किन्तु मैं तो भाग्य का मारा रोजी की तलाश में इधर आ गया। अच्छे दिन आए तो जल्दी ही अपने फले-फूले गाँव को लौट जाऊँगा। बूढ़े ने कहा- भैया ! हमारा गाँव तो उससे बहुत अच्छा है, यहाँ पर सब सुखी व प्रसन्न हैं, चलो तुम भी यहाँ रहो, तुम्हारी रोजी और रोटी का सवाल भी गाँव जरूर हल कर देगा। मुसाफिर चला गया। नौजवानों के मन में अब कुतूहल उठा। आखिर साहस करके पूछा-बाबा ! यह क्या मसला है ? पहले जिस गाँव को राक्षसों का गाँव बतला रहे थे, अब उसे ही स्वर्ग भूमि बतला रहे हो, हम आपकी यह बात समझे नहीं ! ___ मुखिया ने कहा-पहला आदमी आग की चिनगारी था, जलती हुई भेड़ था, वह भेड़ जहाँ भी जाएगी सब जगह आग लगाएगी। वह जहाँ पर पीढ़ियों से रहता आया है, वहाँ पर एक भी स्नेही व मित्र नहीं बना सका, तो तुम्हारे गाँव में आकर कैसे तुम्हें मित्र बना लेगा? जो घृणा और द्वेष का पुतला है, उसके लिए सभी जगह घृणा और द्वेष फैला मिलेगा, ऐसे आदमी को घर में, पड़ौस में या गाँव में रखना कोई पसंद करेगा? नहीं ! इसलिए मैंने उसे यहाँ नहीं रखना चाहा। –तो दूसरे आदमी को रहने के लिए क्यों कहा? अमर डायरी 127 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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