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सहस्त्र-शीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमि सर्वत: स्पृष्ट्वा स तिष्ठत् दशांगुलम् ।। वह महापुरुष है (ईश्वर है), जिसके हजार सिर हैं, हजार नेत्र हैं, और हजार पैर है । वह सारे भूमण्डल को छूकर भी उससे दस अंगुल बाहर है।
नेता वही होता है, जिसके हजार सिर होते हैं, जो वहसोचे तो हजारों सिर भी वही सोचने लगे, वही हल-चल हर एक मन में खड़खड़ाने लगे, वही तार हर मस्तिष्क में झनझनाने लगे। जो विचारों का एकीकरण कर सकता है, वह सच्चा नेता है।
नेता के हजार आँखें होती हैं, वह जिस दृष्टिकोण से देखे, हजारों उसी दृष्टिकोण से देखने लगें। उसे जो दिखाई दे, हजारों को वही दिखाई दे, हजारों उसके दृष्टिकोण अपनाने लगें तो समझना चाहिए उसमें नेतृत्व बोल रहा है। __ उसके हजार पैर होते हैं, जिस राह पर उसके कदम बढ़े, हजारों कदम उसके पीछे चलने को तैयार हो जाते हैं, उसका मार्ग हजारों का मार्ग होता है। जो सबको साथ लेकर चल सके उसका नेतृत्व तेजस्वी होता है। . नेता सारे भूमण्डल को छू जाता है । जो गाँव का नेता है वह सारे गाँव को छूता है । जो समाज का नेता है, वह समूचे समाज को छूता है; और जो राष्ट्र का नेता है, वह समग्र राष्ट्र को छू लेता है। ___ वह नेता उससे दश अंगुल बाहर-दूर रहता है, वह जिस गाँव, समाज और राष्ट्र की समृद्धि के लिए अपने को खपाता है, जीवन होमता है, वह उसके वैभव
और समद्धि से दस अंगुल दूर रहता है, उसमें लिप्त नहीं होता। दस अंगुल से यह भी अभिप्राय है--पाँच कर्मेन्द्रियों और पाँच ज्ञानेन्द्रियों के सुख, वैभव से दूर रहना।
आज हमें ऐसे महान् नेता की जरूरत है, जो समाज और राष्ट्र में चैतन्य भर सकता है, उसका निर्माण कर सकता है । एक महान् आदर्श की ओर उसे ले जा सकता है। अमर डायरी
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