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"लेकिन, चाचा ! पूरब में जाने मात्र से तो तुम्हारी समस्या हल नहीं हो जाएगी ?" .. “क्यों ?" कौवे ने साश्चर्य पूछा।
"इसलिए कि जब तक तुम अपनी आवाज नहीं बदलते, पूरब वाले भी तुम्हारे गाने को इसी तरह नापसंद करेंगे।"
स्थान नहीं, स्थिति बदलने में ही समस्या का सही समाधान है।
वह देखो, सिंह सोया है, उसका सिंहत्त्व सो गया है । वन के क्षुद्र पशु कुलांचे मार कर दौड़ रहे हैं। लो, सिंह जाग उठा, उसका सिंहत्त्व भी जाग उठा। जागृत सिंह की गर्जना से समूचा वन प्रदेश प्रकम्पित हो गया, पशु-दल में भगदड़ मच गई ! ___ तुम्हारी आत्मा का सिंह सोया है, तभी तो काम, क्रोध, मद, लोभ आदि विकारों का पशु-दल उछालें मारकर हू-हू करने लग गया है । जब वह सुप्त सिंह जाग उठेगा, तो विकारों का पशु-दल तुम्हारी मनोभूमि छोड़कर भाग खड़ा होगा।
धर्म का धर्मत्त्व कहाँ है ? उसका ज्योतिर्मय तेज कहाँ है? जहाँ व्यक्तिगत, जातिगत, समाजगत, सम्प्रदायगत, पंथगत और देशगत स्वार्थों एवं भेदों से ऊपर उठकर अखण्ड मानवता का मंगलमय दर्शन होता है, विश्व चेतना के साथ एकता की मधुर अनुभूति होती है ; वहाँ है धर्म का धर्मत्त्व ! वहाँ है धर्म का ज्योतिर्मय तेज !
एक सज्जन हैं, विनय और विवेक के धनी । लड़के की शादी करके लौटने लगे तो लड़की के पिता ने विनम्र भाव से हाथ जोड़कर निवेदन किया-“मैं लड़की वाला हूँ, मुझ पर कृपा रखना !” 18
अमर डायरी
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