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योगी अर्थात् संयत आत्मा साधक का लक्षण तीर्थंकर महावीर ने यही बताया है
- " अप्पपिण्डासि पाणासि, अप्पंभासेज्ज संजए। " साधक को कम खाना चाहिए, और कम बोलना चाहिए ।
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लोग पूछते हैं, आत्मा है तो दिखाई क्यों नहीं देता ?
पर यह बतलाइए - आत्मा को देखने के लिए आपके पास दृष्टि कौन-सी है ? आँखें कैसी हैं ?
बाहर की आँखें तो मैटर हैं, पुद्गली हैं, मूर्त हैं। मैटर से मैटर ही ग्रहण होता है, भौतिक साधन से अभौतिक वस्तु कैसे दिखाई दे सकती है ? देह से देहातीत - अदेही कभी स्पृष्ट हो सकता है ? भगवान् महावीर के समक्ष जब गणधर गौतम ने यही प्रश्न उपस्थित किया, तो समाधान की भाषा में महावीर ने कहा – “नो इन्दियगेज्झ अमुत्तभावा - आत्मा अमूर्त है, वह मूर्त आँखों से ग्रहण नहीं हो सकती
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आत्मा को देखने के लिए ज्ञान की दिव्य-दृष्टि चाहिए । निर्मल ज्ञान और अनुभूति से ही उसकी सत्ता को देखा जा सकता है ।
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मनुष्य अपने दुःख से आप घबराता है, वह कभी कोई साहसपूर्ण कार्य नहीं कर सकता ।
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स्वात्मपीड़ा की भावना से बुद्धि कुंठित होती है, बौद्धिक कुंठा आत्म- श्रद्धा की हत्या करती है । जिसे अपने आप पर श्रद्धा, विश्वास नहीं, वह अपने हाथों अपना विनाश कर लेता है ।
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अमर डायरी
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