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ही-आज नहीं तो कल ! कल नहीं तो परसों । राम को वनवास के लिए पिता की ओर से कहाँ आज्ञा मिली थी? तथागत बुद्ध को महाभिनिष्क्रमण के लिए पिता का कब आदेश मिला था? आज्ञा का प्रश्न मुख्य नहीं है, मुख्य प्रश्न है आशीर्वाद का। हर पुत्र को और हर पुत्री को, हर शिष्य को और हर शिष्या को गरुजनों की ओर से आशीर्वाद अवश्य मिलना चाहिए। आज्ञा परिस्थिति पर निर्भर है, कभी नहीं भी मिल सकती है।
और जो सत्कर्म के लिए समय पर अन्तर्हदय से आशीर्वाद नहीं दे सकता, वह गुरुजन नहीं, कुछ और होगा?
सत्कर्म स्वयं ही एक आशीर्वाद है ।
सेवा के सम्बन्ध में एक प्रश्न किया जाता है कि सेवा किसकी करें और किसकी नहीं? मैं पूछता हूँ-पानी किसको पिलाना चाहिए? आपका उत्तर होगा प्यासे को । बस, इसी से सेवा का प्रश्न भी हल हो जाता है। सेवा उसकी करनी चाहिए, जिसे सेवा की जरूरत है।। ___ शराब पीकर गन्दी नाली के कीचड़ में बेहोश पड़े हुए को भी सहृदय भाव से उठाना चाहिए, यह सेवा है। पापी से पापी रोगी की भी सार सँभाल करनी चाहिए, यह सेवा है । अवैध सन्तान को जन्म देने वाली व्यभिचारणी स्त्री की भी प्रसूतिगृह आदि में योग्य देखभाल रखनी चाहिए, यह सेवा है। सेवा पापी या पुण्यात्मा की भाषा में नहीं सोचती । वह सोचती है-करुणा की भाषा में, अन्तर की सहज करुणा सेवा का मूल स्रोत है।
आध्यात्मिकता भूलों को पहचानने की और पहचान कर उन्हें साफ करने की . एक अद्भुत युक्ति है, शक्ति है। .
संपूर्णता अर्थात् पूर्ण पवित्रता साधनापथ का ध्रुवतारा है । दूर तक, बहुत दूर तक चलने पर भी वह दूर ही दूर दिखाई देता है। परन्तु इससे क्लान्त, मिश अमर डायरी
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