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मनुष्य की प्रगति का इतिहास ही श्रमनिष्ठा का इतिहास है। विज्ञान का चमत्कार वस्तुत: मनुष्य की क्रियाशीलता का ही चमत्कार है।
तथागत बुद्ध ने एक बार ऐसे भिक्षु को देखा, जो धर्म की बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था, लोगों को इकट्ठा करके उपदेश दे रहा था, किंतु वह स्वयं के जीवन में शील और सदाचार से शून्य था। तथागत ने कहा-“भिक्खु ! क्या कोई ग्वाला, जो जनपद की गायों को गिनता रहता है, कभी उनका स्वामी कहला सकता है?" ___ “नहीं, भन्ते ! गोप (ग्वाला) जनपद की गायों की संभाल रखने वाला पास है, वह गो-स्वामी नहीं हो सकता।" ___ तथागत ने गम्भीर होकर कहा-“भिक्षु ! जो श्रमण सिर्फ धर्म संहिताओं के पाठ गिनता रहता है, वह कभी धर्मफल का स्वामी नहीं हो सकता है; धर्म को जिह्वा से नहीं, जीवन से व्यक्त करो।
एक बार एक आचार्य के पास दो शिष्य आए ! प्रणामपूर्वक निवेदन किया- भगवन् ! हमारा अध्ययन काल समाप्त हो रहा है, अब हमें अपने क्षेत्र का चुनाव करना है, हमें क्या होना चाहिए, क्या बनना चाहिए?"
आचार्य अपने दोनों विद्वान शिष्यों को साथ लिए घूमते हुए एक उद्यान में पहुँचे। एक छोटी-सी सुनहली पांखों वाली मधुमक्खी फूलों के आस-पास मंडरा रही थी, उसकी गुनगुनाहट से आचार्य और शिष्यों का ध्यान उसी पर केन्द्रित हो गया ! कुछ ही क्षण बाद गुनगुनाहट बन्द हो गई और मधुमक्खी फूलों पर चुपचाप बैठी रसपान कर रही थी। - आचार्य ने शिष्यों की ओर प्रश्न भरी दृष्टि से देखा-“भद्र ! क्या देख रहे हो?" . पहले शिष्य ने कहा-"गुरुदेव ! सत्य की जिज्ञासा में हलचल होती है, किंतु सत्य की अनुभूति मौन होती है।"
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अमर डायरी
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