Book Title: Amar Diary
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 112
________________ दूसरे शिष्य ने कहा- 'भगवन् ! जब तक सत्ता का रस प्राप्त नहीं होता, बुद्धि जाग्रत रहती है, क्रान्ति में तीव्रता रहती है । पर सत्ता का रस मिलते ही बुद्धि पर नशा छा जाता है, चिन्तन मूक हो जाता है, क्रान्ति दब जाती हैं । " गुरु ने प्रसन्नतापूर्वक दोनों शिष्यों के कंधों पर हाथ रखा। पहले से कहा- 'भद्र ! जाओ, दर्शन की गुत्थियाँ सुलझाओ ! तुम दार्शनिक हो ।' 'और तुम अपनी व्यावहारिक बुद्धि से जनता पर शासन करो। तुम्हारी राजनीति से देश को लाभ होगा।” आचार्य ने द्वितीय शिष्य को आशीर्वाद दिया । 6 अमर डायरी - परिग्रह और परिग्रहवाद में अन्तर है । परिग्रह उतना हानिकर नहीं जितना कि परिग्रहवाद है । यदि परिग्रह के मूल में श्रम है, व्यक्ति का अपना पुरुषार्थ है, न्यायनीति है, तो वह परिग्रह समाज कल्याण के लिए भी उपयोगी हो सकता है, किन्तु परिग्रहवाद में आसक्ति का स्वर छिपा है। उसके मूल में शोषण है, उत्पीड़न है, अन्याय है, अत्याचार है । यह स्वयं व्यक्ति के लिए भी घातक है, और समाज एवं राष्ट्र के लिए भी। आज जो समाज में शोषक और शोषित, स्वामी और सेवक, अमीर और गरीब के आत्यन्तिक विभेद की वैर और विरोध की जो दीवारें खड़ी हैं। ये किसने खड़ी की हैं ? परिग्रहवाद ने खड़ी की हैं। , * * * प्रेम अलग चीज है, भौतिक शक्ति और बल अलग चीज है; भौतिक शक्ति के प्रयोग में मनुष्य का अहं बोलता है, दर्प गूँजता है और प्रेम में विनय एवं निरभिमानिता मुखरित होती है। प्रेम अमर है, वह कभी किसी से नष्ट नहीं किया जा सकता । किन्तु शक्ति अपने से बड़ी शक्ति से नष्ट हो जाती है। महात्मा ईसा इसी सन्दर्भ में कभी कहा था- तू अपनी तलवार म्यान में रख ले, क्योंकि जो तलवार के बल पर आगे बढ़ते हैं, वे तलवार से ही नष्ट भी हो जाते हैं । xXxx Jain Education International ¤ For Private & Personal Use Only 103 www.jainelibrary.org

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