________________
शुभ अशुभ के प्रभावों और प्रतिक्रियाओं से अस्पृष्ट रहकर सब अवस्थाओं में सर्वदा आनन्दमय होकर रहना - 'ईश्वरत्व' हैं ।
तुम सोचो, वर्तमान में किस अवस्था से गुजर रहे हो, और कौन सी अवस्था प्राप्त करनी है ?
*
*
कभी-कभी विचार आता है " क्या संविधान” के जरिये से देश में समाजवाद आ सकता है ?
'शासन तन्त्र' की सुई - मनुष्य - मनुष्य के हृदयों को जोड़कर एक कर सकती है ?
शक्ति और सत्ता - जन-जन के बीच सद्भावना स्थापित करने में समर्थ हो सकती हैं ?
चिन्तन मनन की लम्बी घाटियों को पार करने के बाद भी इनके उत्तर में 'नकारात्मक ध्वनि' लौटकर आई है— नहीं ! नहीं ! और नहीं !
समाजवाद, सहकारिता और सद्भावना ऊपर से नहीं थोपे जा सकते। इनका प्रवाह जीवन के भीतर से निकलकर बाहर की ओर बहना चाहिए । समाजवाद के लिए सहकारिता आवश्यक है, और सहकारिता के लिए सद्भावना !!
*
एक ग्वाला (चरवाहा) बाड़े में जमा हुए पशुओं को लकड़ी के डंडे से हांक कर ले जा रहा है ।
और इधर देखिए – एक नेता भीड़ में जमा हुए मनुष्यों को अपनी बुद्धि के डंडे से हांकता ले जा रहा है ।
भीड़ में बुद्धि नहीं होती, इसलिए वहाँ पर भी 'पशुत्व' ही रहता है ।
*
क्या अनेकान्तवाद, सत्य और अहिंसा से भिन्न कोई तीसरा सिद्धान्त है ?
अमर डायरी
95
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org