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दूसरी बात, जिस पर कि उसने आश्चर्य व्यक्त किया, यह थी कि—“पिता की मर्जी से विवाह सूत्र में बंध जाते थे, और जीवन भर एक-दूसरे के साथ रहते थे..... ? कैसे रहते थे? ____ भारतीय जीवन के लिए जो बातें सहज धर्म की तरह बन गई हैं, पश्चिम वाले उस पर आश्चर्यचकित होते हैं।
सत्य का उपदेश देने से कल्याण नहीं होता, सत्य का आचरण करने से ही कल्याण होता है।
शास्त्र की चर्चा करने वाला तो शास्त्री होता है, आचरण करने वाला ही साधु होता है।
शास्त्र और धर्म की चर्चा से आज तक किसी का कल्याण नहीं हुआ। संत तुकाराम ने कहा-“बोलांची च कड़ी बोलांचा च भात जेवोनी या तृप्त कोण
झाला?"
बोलने की कढ़ी और बोलने का भात खा कर कभी कोई तृप्त हुआ है?
धर्म, मनुष्य में रहे हुए ब्रह्मत्व को जगाता है। शिक्षा; मनुष्य में ही रही हुई पूर्णता का विकास करती है।
नदी जितनी गहरी होती है, उतना ही शोर कम करती है। मनुष्य की विद्वता जितनी गहरी होती है, वह उतना ही कम बोलता है।
सदा प्रसन्न रहने का एक स्वर्ण सूत्र है, और वह यह है कि अपने पर सब का अधिकार है, किन्तु अपना अधिकार ईश्वर के सिवाय किसी पर नहीं है।" यह विचार यदि मन में स्थिर कर लिया जाए तो बस जीवन में सदा ही बहार रहेगी, मन सदा प्रसन्न रहेगा।
अमर डायरी
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