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संत तुकाराम ने नम्रता को सबसे बड़ी वीरता बताया है। उन्होंने कहा है“नम्र झाला भूता तेणें, कोंडिले अनंता हें चि शूरत्वा चे अंग"
जो प्राणी मात्र के प्रति नम्र हो जाता है, वह सब को अपने वश में (बंदी) कर लेता है, यही तो उसकी वीरता है ।
संसार को अपना बंदी बनाना, यह वीर का लक्षण है
संसार को अपने समक्ष झुका लेना, यह नम्रता का सहज गुण है I
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बलि राजा ने वामन के आगे मस्तक झुका कर अपने द्वार पर द्वारपाल के रूप में (पाताल में होते हुए भी) भगवान को अटका लिया, क्या यह किसी अन्य शक्ति से सम्भव था ?
यह शक्ति सिर्फ नम्रता, या समर्पण में ही है ।
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व्रत और मत में अन्तर है ।
एक विचार है, दूसरा साधना की पद्धति ।
व्रत के बिना मत का कोई महत्त्व नहीं, जैसे कि प्राण के बिना देह का ।
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प्रेम देता ही रहता है, माँगता नहीं। जो माँगता है वह प्रेम नहीं होता, ममता होती है ।
ममता-याने मेरा पन, मालिकी या स्वामित्व की भावना । प्रेम से इसका क्या सम्बन्ध ?
ममता दुःख का कारण है । प्रेम में सुख ही सुख है ।
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क्या तुम जानते हो कि प्रकृति ने स्वर्ण को पृथ्वी के पेट में क्यों छुपाकर रखा
है ?
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अमर डायरी
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