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किसी की हत्या करना, सावधानी का काम भले ही हो, पर साहस का काम तो है ही नहीं !
सबसे बड़ी विजय वह है, जिसे मनुष्य अपने ऊपर प्राप्त करे । दूसरों पर विजय, विजय नहीं, क्रूरता है।
कोई भी मनुष्य एकदम ‘महान' नहीं बन जाता । परिस्थितियाँ किसी को बड़ा बना सकती हैं, मगर महान् नहीं बना सकतीं।
महानता के संस्कार जिसमें होते हैं, वही 'महान' बनता है। और वे संस्कार जीवन के उदय काल से ही विकसित होने प्रारम्भ हो जाते हैं। __गोपाल कृष्ण गोखले की एक घटना कभी-कभी मैं सुनाया करता हूँ कि उनके जीवन में महानता के संस्कार कितने गहरे थे।
एक बार अध्यापक ने विद्यार्थियों से पूछा “यदि तुम्हें कहीं एक हीरा पड़ा मिल जाए तो तुम क्या करोगे?" ।
एक ने कहा--"मैं उसे बेचकर कार खरीदूँगा।" दूसरे ने कहा—“मैं बहुत बड़ा बँगला बना लूँगा, और आराम करूँगा।" तीसरे ने अपने पिता को दे डालने की बात कही।
अध्यापक के मन को विद्यार्थियों की मनोवृत्ति से संतोष नहीं हुआ। वह एक-एक विद्यार्थी से यह प्रश्न पूछता गया । अन्त में एक विद्यार्थी से पूछा गया, तो उसने उत्तर दिया-"मैं सबसे पहले उसके मालिक का पता लगाऊँगा।" , _ “समझ लो, उसके मालिक का पता नहीं लगा तो?"
" तो मैं उसे बेच डालूँगा, और जो रुपया मिलेगा उसका आधा गरीबों को बाँट दूँगा, और आधा किसी सेवा फंड में जमा करा दूंगा।" अध्यापक ने विद्यार्थी की पीठ थपथपाई।
ये संस्कार ही आगे जाकर उसे महान सत्यवादी और देश भक्त 'गोपाल कृष्ण गोखले' के रूप में चमका सके।
अमर डायरी
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