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स्वामीजी की यह घबराई हुई अवस्था देखकर दूर से एक अपरिचित आवाज आई—“बन्दरों का सामना करो, पीठ दिखाकर दौड़ो नहीं, डटकर मुकाबला करो।"
स्वामी विवेकानन्द ज्योंही मुँह फेर कर बन्दरों के सामने डट कर खड़े हुए कि बन्दर ठिठक कर पीछे हट गए और अन्त में भाग गए।
इस घटना से स्वामी विवेकानन्द को जीवन भर के लिए सुनहला उपदेश मिला, और वह यह कि संसार में जो कुछ भयानक है और खतरनाक है, उसके सामने डटकर खड़े हो जाओ। वीरता से उसका मुकाबला करो। केवल यही उपाय है विपत्तियों से छुटकारा पाने का, और उन पर विजयी होने का।
सामने एक विशाल वृक्ष लहलहा रहा है। मैं सोचता हूँ-वृक्ष का यह विराट वैभव किस मूलाधार पर खड़ा है ? ___ वृक्ष का मूल आधार है, वे जड़ें, जो पृथ्वी के गर्भ में बहुत गहरी चली गई हैं । वे पृथ्वी से रस लेती हैं, और वृक्ष को अर्पण कर देती हैं। जड़ों ने वृक्ष को मजबूती के साथ पकड़ रखा है । हवा के तेज झोंकों से गिरने ही नहीं देतीं।।
वृक्ष का हर पत्ता, हर फूल और हल फल, उनकी ओर आभार से सिर झुका रहा है। हर नई कोंपल जड़ों को प्रणाम करके अपना आभार प्रकट कर रही है।
किन्तु देखो ! कितनी विनम्र और लज्जाशील हैं वे जड़ें ! पृथ्वी के अन्दर किस प्रकार शर्माई हुई सी मुँह छिपाए बैठी हैं?
समाज-सेवा करने वाले ही समाज-वृक्ष की गहरी जड़ें हैं, और समाज का हर व्यक्ति एक पत्ता है, फूल है, और फल है।
समाज का गौरव, समृद्धि और उन्नति उन्हीं प्रसिद्धि से दूर रह कर चुपचाप समाज का पोषण करने वाली जड़ों पर टिका है।
अमर डायरी
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