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प्रेम क्या है ?
प्रेम हृदय की वह तरंग हैं, जो शत्रु की शत्रुता का मैल धोकर उसे मित्रता की उज्ज्वलता प्रदान करती है ।
प्रेम, अखिल विश्व को अपनी सहज ममता से आप्लावित कर देता है । प्रेम महान है, किन्तु उसको मुक्त मन से लुटाने वाला और भी महान् है ।
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संसार में कोई भी व्यक्ति इतना धनवान अथवा महान नहीं है कि मुस्कान बिना अपना काम चला सके
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और न ही कोई व्यक्ति इतना निर्धन अथवा तुच्छ है कि जिसे मुस्कान सम्पन्न न बना सके ।
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दुनिया में दो ही ताकत हैं- एक तलवार और दूसरी कलम । परन्तु तलवार हमेशा कलम से शिकस्त खाती आई है।
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दार्शनिको ! भूख, गरीबी और अभाव के अध्यायों से भरी हुई इस भूखी जनता की पुस्तक को भी पढ़ो ।
ईश्वर और जगत् की उलझन को सुलझाने से पहले इस पुस्तक की पहेली को भी सुलझाने का प्रयत्न करो !
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तलवार मनुष्य के शरीर को झुका सकती है, मन को नहीं । मन को झुकाना हो, तो प्रेम का ब्रह्मास्त्र उठाओ। प्रेम का ब्रह्मास्त्र अजेय है, अचूक है 1
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जो आन लो, और यदि वह सत्य पर आधारित है, तो उस पर अड़े रहना ही तुम्हारी शान है।
अमर डायरी
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