________________
२. विपत्तियाँ सिर पर मँडराने पर भी मन स्थिर रहता है । ३. मृत्यु की घड़ी आने पर भी धैर्य अखण्डित रहता है ।
*
*
आसक्ति और अशक्ति में क्या अन्तर है ? सिर्फ एक मात्रा का । पहला मानसिक रोग है,
*
शारीरिक ।
*
भोग से तृप्ति नहीं, आसक्ति बढ़ती है । भोक्ता चाहता है- “ अधिक शक्ति हो तो और अधिक भोग करूँ ।"
*
दूसरा
इस प्रकार अधिक शक्ति, अधिक भोग, फिर अधिक अतृप्ति और अन्त में, अधिक दुःख । यही है भोग का वास्तविक रूप ।
*
शरीर की खुराक अन्न है, जीवन की खुराक शास्त्र- श्रवण । शास्त्र - श्रवण, वह मशाल है, जो जीवन में अज्ञान का अंधकार मिटाकर प्रकाश फैलाती है । शास्त्र- श्रवण से जीवन के दाग उसी प्रकार दिखाई देते हैं, जिस प्रकार दर्पण में मुँह के दाग !
अन्न चबाने से पचता है, शास्त्र श्रवण-मनन करने से जीवन में ओज भरता है ।
Jain Education International
यह नहीं कि धार्मिक व्यक्ति के हृदय में ही धर्म की लौ जला करती है । कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जीवन-भर अंधकार में रहने वाले हृदय में भी अकस्मात् वह विचित्र लौ जल उठती है कि संसार उसके प्रकाश को चकित होकर देखता रहता है, उसको भी, और अपने को भी !
कुछ वर्ष पहले क्वेटा में भूकम्प हुआ था। हजारों आदमी मर गए, हजारों ही अनाथ हों गए, अपंग और निराधार हो गए। हृदय में कँपकँपी पैदा करने वाला दृश्य ! बड़ा ही वीभत्स और बड़ा ही करुण !
74
For Private & Personal Use Only
अमर डायरी
www.jainelibrary.org