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आचारहीन पाण्डित्य घुन लगी लकड़ी के समान अन्दर से खोखला होता
है ।
रोगन की पालिश लकड़ी को चमका सकती है, किन्तु उसके अन्दर शक्ति तो नहीं डाल सकती ?
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शब्दों की अपेक्षा कर्म अधिक जोर से बोलते हैं ।
उपदेशक ! तुम चुप हो जाओ ! अपने आचरण को बोलने दो। यह उपदेश का युग नहीं, आचरण का युग
है
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ब्रह्मचर्य जीवन का अग्नि तत्व है, तेजस् एवं ओजस् । उसका प्रकाश और उसकी प्रभा स्वयं के जीवन को ही नहीं बल्कि संसार को भी प्रकाशमान बना देती है ।
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सच्चे संत का जीवन बेपरवाही, बेफिक्री और औलियापन लिए होता है उसमें दिखावट या नकल नहीं होती। दर्शक पर वह अपनी सहजता और सादगी की अचूक छाप डालता है, जो किसी प्रचार या पुस्तक से नहीं डाली जा सकती ।
जूनागढ़ में एक बार किसी ने नवाब साहब के कान भरे कि यह सहजानंद स्वामी निरा पाखंडी है ।
नवाब ने कहा- किसी दिन मैं देखूंगा और कुछ ही समय बाद स्वामी सहजानंद जी जूनागढ़ आए। भक्तों ने बड़ी धूम-धाम से हाथी पर सवारी निकाली ।
सवारी शहर के मध्य में पहुँच रही थी कि किसी भक्त ने एक चीभड़ा( तरबूज ) भेंट किया । स्वामीजी ने बड़े प्रेम से स्वीकार किया और हाथी पर बैठे-बैठे ही खाने लग गए।
अमर डायरी
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