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उपादान और निमित्त में क्या अन्तर है?
निमित्त कार्य की पूर्ति होने पर पृथक, नष्ट या अनुपयोगी हो जाता है, जब कि उपादान कारण कार्य में अभेद भाव से अन्तर्निहित रहता है।
इसलिए निमित्त कैसा भी रहे, किन्तु उपादान को शुद्ध रखो।
धार्मिक क्रियाएँ किसलिए की जाती हैं? अन्तर्मुख वृत्ति का अभ्यास करने के लिए !
एक साँप पर हजारों चीटियाँ चिपटी हुई थीं। शिष्य ने पूछा-"गुरुदेव ! यह क्या है ?”
गुरु ने गंभीरता से उत्तर दिया-“कुगुरु के रूप में हजारों शिष्यों को इसने भटकाया था। अब वे शिष्य गुरुजी को कचोट रहे हैं।
धर्म, प्रचार से नहीं, आचार से फैलता है। संस्कार से स्थिर होता है और विचार से शुद्ध होता है।
रागाद्यदुष्टं हृदयं, रागदुष्टाऽनृतादिना।
हिंसादि-रहित: काय: केशवाराधनत्रयम् ।। रागद्वेष रहित हृदय, सत्य वचन, और पवित्र कर्म ईश्वर की सच्ची आराधना है।
सत्पुरुष के स्वभाव में ये तीन बातें सहज रूप में मिलती हैं
१. सब कुछ लुट जाने पर भी मन उदार रहता है। अमर डायरी
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