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चाहिए । ढीले मन, और रोनी सूरत बनाकर सत्कर्म करना, नहीं करने से भी बुरा है।
जीवन में उत्साह और धैर्य की आग ठंडी न होने दो, फिर स्वर्ग दूर नहीं है।
एक भाई ने एक बार कहा कि अमुक व्यक्ति कहते हैं कि कवि जी तो इस संसार को स्वर्ग बनाने की बात करते हैं। यह सिद्धान्त-विरुद्ध है, साधुत्व के विपरीत है।
मैंने कहा-भाई ! वे इस संसार को स्वर्ग नहीं बनाना चाहते हैं तो क्या नरक बनाना चाहते हैं?
क्या नरक बनाना सिद्धान्त और साधुत्व के अनुकूल है ?
जब तक हमारा आचरण इस संसार को स्वर्ग नहीं बना लेता, तब तक आगे (परलोक) के स्वर्ग का स्वप्न केवल दिवा-स्वप्न है और कुछ नहीं।
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धन दौलत पाकर भी सेवा अगर किसी की कर न सका। दया भाव ला दुःखित दिलों केजख्मों को जो भर न सका। वह नर अपने जीवन में, सुख शान्ति कहाँ से पाएगा? ठुकराता है जो औरों को, स्वयं ठोकरें खाएगा।
--उपाध्याय अमर मुनि
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अमर डायरी
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